नूतन प्रसाद
कृष्ण और रूखमणी भ्रमण पर निकले आगे उन्होंने देखा कि लोगों की भीड़ लगी है। वे कृष्ण के मूर्ति की पूजा कर रहे है। उन पर फूल अक्षत चढ़ा रहे है। आरती गा रहे हैंं ... रूखमणी ने कहा- देखो तो, लोग आपकी भक्ति भावना से पूजा कर रहे हैं। जाओ न, साक्षात दर्शन दे दो।''
कृष्ण मुस्काये। कहा - रूक जाओ। अभी दर्शन देने का वक्त नहीं आया है।''
उधर कौरव और पाण्डवों के बीच द्यूत क्रीडा चल रहा था। युधिष्ठिर दांव लगाकर समस्त सम्पत्ति हार गये। पर दुर्योधन सभी बाजी जीत गया। इस सभा में भीष्म पितामह, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव उपस्थित थे। मगर उन्होंने इस अनर्थ को नहीं रोका। दुर्योधन ने युधिष्ठिर से कहा- अगर आप हारी हुई सम्पत्ति वापस चाहते है। तो द्रौपदी को दांव पर लगा दीजिये। जीत गये तो सम्पत्ति वापस लौटा दी जायेगी हार गये तो द्रौपदी मेरी हो जायेगी।''
युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया और बाजी हार गये। दुर्योधन ने दु: शासन से कहा जाओ- द्रौपदी को इस भरी सभा के मध्य लाओ। मेरी जंघा पर बिठाओ।''
दु: शासन द्रौपदी के पास गया। कहा- अब तुम पर हमारा अधिकार है। युधिष्ठिर तुम्हें द्युत में हार गये है। हम तुम्हारा अपमान करेंगे। तुम्हारा चीरहरण होगा।''
द्रौपदी ने खिल्ली उड़ायी। कहा- अरे जाओ मेरा तुम चीरहरण क्या करोगे- मुझे छूने से पहले ही पाण्डव गण तुम्हारे प्राण ले लेंगे। धर्मराज युधिष्ठिर है। गांडीव धारी अर्जुन और गदाधारी भीम हैं। साथ ही भीष्मपितामह हैं। इतने योद्धाओं और मेरे शुभचिंतकों के रहते तुम मेरा कुछ भी अहित नहीं कर सकते। उन पर मेरा विश्वास है। वे मेरी रक्षा करेंगे।''
दु: शासन ने द्रौपदी के बाल पकड़े। उसे घसीटते हुए सभा के मध्य लाया। द्रौपदी का चीरहरण प्रारंभ हो गया। उसे निर्वस्त्र करने दु:शासन साड़ी को खींचने लगा। द्रौपदी ने विलाप करते हुए लज्जा बचाने की प्रार्थना की मगर पाण्डवों- प्रतिष्ठित जनों ने सहायता नहीं की। वे सिर झुकाये बैठे रहे। अंतत: द्रौपदी ने कृष्ण को गुहार लगाई। कहा- कहां हो कृष्ण, मेरी लज्जा जाने वाली है। चीरहरण होने वाला है। शीघ्र आओ। मेरी रक्षा करो।''
कृष्ण दौड़े। उन्होंने रूखमणी को यह भी नहीं बताया कि कहां जा रहे है? उधर दु:शासन साड़ी खींच रहा हैं उधर कृष्ण साड़ी की पूर्ति कर रहे है। अंतत: दु: शासन थक गया मगर द्रौपदी को निर्वस्त्र नहीं कर पाया। कृष्ण ने मर्यादा की रक्षा की। पश्चात् वे रूखमणी के पास गये। रूखमणी ने पूछा- कहां चले गये थे- यहां भक्तगण आपकी पूजा आरती कर रहें हैं। उनको दर्शन देना था न।''
कृष्ण ने कहा- द्रौपदी की अंतिम प्रार्थना पर उसकी अंतरात्मा की पुकार सुनकर उसकी सहायता करने गया था।''
- क्या बात है- मैं समझी नहीं। स्पष्ट बताइये न।''
- क्या बात है- मैं समझी नहीं। स्पष्ट बताइये न।''
कृष्ण ने कहा- देखो- ये जो मेरे भक्त हैं वे फूल वूल चढ़ा रहे हैं। आनंदित होकर आरती वारती गा रहे हैंं, उन्हें मेरी सहायता की आवश्यकता नहीं है तो मैं उनके पास नहीं गया। उनके भक्ति गीत में मैं क्यों खलल डालूं। लेकिन द्रौपदी की लज्जा जाने वाली थी। वह विवश थी। उसने अंतरात्मा की आवाज से मेरी पुकार की सिर्फ मेरी। अंतत: मुझे उसकी सहायता करने जाना पड़ा।''
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