विश्वास
सरपंच का नाम भोला था। आजकल वह उदास रहता था। लोग उसके हर कार्य की आलोचना करते। सड़क बनवाता तो लोग कहते कि तालाब खुदवाना था। तालाब खुदवाता तो सलाह मिलती कि गली में कांक्रेटीकरण होना चाहिये।
एक दिन वह भोजन करने बैठा कि लोग आ गये। वे नाराज थे। कहा - '' तुम करते क्या हो - जनहित के लिये हमने तुम्हें चुना। तुम्हें हम लोगों की भूख मिटाने की सोचना चाहिये पर तुम स्वयं खाने बैठे हो। तुम्हारा नाम भोला है पर भाला जैसा वार करते हो।''
सरपंच को क्रोध आया। पर शांत भाव से पूछा - '' आखिर समस्या क्या है- मैं अपनी शक्ति अनुसार उसका सामाधान खोजूंगा।
मजदूर ने कहा - '' रोजगार गारंटी का पैसा अभी तक अप्राप्त है।''
महिला ने फटकार लगाई - '' मेरा विधवा पेंशन नहीं आया है। मैंं कलेक्टर से शिकायत करूंगी।''
वृद्ध ने आरोप लगाया- '' अरे ये भ्रष्टाचारी है। पंचायत के फंड से मोटर सायकिल खरीदा है।''
बेचारे सरपंच की भूख खत्म हो गयी। एक दिन मैं उसके घर गया। उसने कहा - '' मैं लोगों की भलाई का काम करता हूं। मगर वे खोर गली में मेरी निंदा करते हैं।'' मैंने कहा - '' भाई, तुम किस्मत वाले हो। तुम्हें लोग गालियां देते है। ''
सरपंच ने मुझे टेढ़ी नजरों से देखा। कहा - '' मेरा अपमान हो रहा है। मैं हीन भावना से ग्रसित हो रहा हूं पर तुम मुझे किस्मत वाले कहते हो। मैं दुखी हूं। कभी - कभी स्तीफा देने का मन करता है।''
मैंने समझाया - '' लोगों ने तुम पर विश्वास किया कि यह हमारे क्षेत्र का विकास करेगा। हितकारी योजनाओं का लाभ दिलायेगा। अभी तुम्हारी याद करते हैं .... मेरे भाई , मैं भी इसी क्षेत्र का निवासी हूं। मुझे गालियां नहीं मिलती। लोग जानते हैं कि यह गालियां देने के योग्य नहीं हैं। यह किसी पद पर नहीं तो जनता की मदद क्या खाक करेगा।''
सरपंच की उदासी खत्म हो गयी। उत्साहित होकर पूछा - '' तो क्या निंदा सुनकर भी लोगों के हित में काम करूं ?''
मैंने कहा - '' अवश्य। इससे तुम्हें मानसिक शांति मिलेगी। एक कवि ने कहा भी है -
भला करने वाले भलाई किये जा
बुराई के बदले दुआएं दिये जा।
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