नूतन प्रसाद
कबीरदास की प्रसिद्धि सर्वत्र फैल गई थी। लोग उनसे वास्तविक जीवन जीने की सलाह लेने आते। वैद्य बीमार व्यक्ति को स्वस्थ करने कड़वी दवाई देता है ऐसे ही कबीर भी पथ प्रदर्शन में चेतावनी देते थे।
कुछ उनके आलोचक हो गये। वे साहेब से ईर्ष्या रखते। उनमें एक निंदक था। सेठ जी धनवान से उनकी भेंट हो गई। सेठजी ने अपनी समस्याएं बताई। कहा - '' भोजन करता हूं पर पचता नहीं। खड़ी डकारें आती है। रात में नींद नहीं आती। कोई कुशल वैद्य बताओ ?''
निंदक को बिना मांगे मोती मिल गया। कहा - '' कबीर के पास जाओ। वे वैद्य के साथ - साथ तांत्रिक भी हैं। वे झाड़ फूक करके दवाई देकर तुम्हें स्वस्थ कर देंगे।''
सेठ जी कबीर के पास गये। कहा - '' मैं कितना भी कमाता हूं पर अधिक कमाने की लालसा रहती है। निन्यानबे का चक्कर है। अनिद्रा और अपच रोग है। मैंने सुना कि आप तंत्र - मंत्र जानते है। साथ ही वैद्य हैं। मेरा उपचार कर दीजिये।''
कबीर मुस्काये। पूछा - '' मेरी प्रतिभा के संबंध में किसने बताया ?''
- '' निंदक ने .... ''
- '' निंदक मेरा अभिन्न हितैषी है। उसने आपको सही सलाह दी - वास्तव में मैं तंत्र - मंत्र जानता हूं। तुम्हारी बीमारी का इलाज मेरे पास है।''
कबीर ने कागज में कुछ लिखा। उसे तावीज के अंदर डाला। कहा - '' इसे रात को सोते समय बांह में बांध लेना। तुम्हारी समस्त बीमारियां खत्म हो जायेंगी।''
सेठ जी शंकित हो उठे। पूछा - '' बस इतना ही- अपच और अनिद्रा को दूर करने वाली दवाई नहीं देंगे ?''
कबीर ने कहा - '' दवाई की आवश्यकता नहीं है। मैंने मंत्र के द्वारा तावीज को सिद्ध कर दिया है।''
सेठ जी वापस हुए। वे रात में तावीज बांधकर सोने लगे। उन्हें गहरी निन्द आई। अनिद्रा गई तो पाचन तंत्र भी सुधरा। उनका मुखमण्डल चमकने लगा।
वे कबीर का आभार व्यक्त करने उनके पास गये। कहा - '' साहेब, वास्तव में आप चमत्कारी है। अब मुझे ज्यादा धन कमाने की लालसा नहीं रहती। अब मैं अपने को स्वस्थ महसूस करता हूं।''
कबीर ने कहा - '' यह जादुई तावीज का कमाल है।''
- '' मैं अभी भी चकित हूं कि आपने तावीज में क्या मंत्र फूंक दिया कि उसने मुझे नवजीवन दे दिया।''
- '' तावीज को खोल लो। उसमें लिखे शब्दों को पढ़ लो। वास्तविक तथ्य का पता लग जायेगा।''
सेठ जी ने तावीज खोला। कागज निकालकर पढ़ने लगे - '' गो धन गजधन बाजीधन और रतनधन खान जब आवे संतोष धन सब धन धूरिसमान।
कबीर ने समझाया- मैं जादूगर नहीं हूं। ना तांत्रिक हूं। आपने संतोष धारण किया तो अनिद्रा और अपच की बीमारी हो गई। आपके जीवन को नई रोशनी मिली।
सेठ जी ने संतोष रहने का व्रत ले लिया। कबीर जनहित में सलाह देते पर उससे अधिक निंदकों की संख्या बढ़ने लगी। एक दिन लोगों ने देखा कि वे अपने घर के आगे कुटिया बना रहे हैं। उसकी साफ - सफाई की गई। खाट बिछाया। ठंडा पानी रखा। उनके पास जिज्ञासु गया। पूछा - '' साहेब, यह क्या- आपके पास रहने के लायक घर है पर अलग से कुटिया बना रहे हैं ?''
कबीर ने कहा - '' सुगंधित फूलों को काले भौंरे काटने दौड़ते हैं वैसे ही मेरे आलोचक हो गये हैं। वे बेचारे निंदा करते - करते थक जाते हैं तो आराम करने खाट बिछा दिया है। गला सूखा जाता है तो ठंडा पानी रख दिया।''
जिज्ञासु आश्चर्य में पड़ गया। कहा - '' अब तक नियम यह है कि ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाये। पर आपकी प्रतिष्ठा पर आंच पहुंचाने वाले की सेवा करते है। उस रहस्य से पर्दा उठाइये।''
कबीर मुस्काये। कहा - '' निंदक मेरी भलाई करते हैं। मैं कर्तव्य पथ से डिगता हूं तो वे सचेत करते हैं। वो कहावत है न - रंग लगे न फिटकरी रंग चोखा हो जाये। मैं बिना खर्च किये सही रास्ता पा लेता हूं-
निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिना निरमल करे सुभाय।
जिज्ञासु आनन्द से भर गया। कहा - '' आप धन्य हैं। तभी तो मनीषीजन आपको उलटबांसी के चिंतक कहते हैं।
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