नूतन प्रसाद
कबरी बिल्ली उठ कर भाग गई तो रामू की मां प्रसन्नता से नाच उठी . उसने अपनी बहू को छाती से चिपकाकर कहा - '' बेटी, तुम बड़े भाग्यवान हो जो बिल्ली के मारने के अपराध से बच गयी . यही नहीं पंडित परमसुख को दान दक्षिणा भी देना नहीं पड़ेगा .''
बहू बोली - '' और ग्यारह तोले सोने की बात भूल गई मां, वे भी तो हाथ से निकल ही रहे थे . अब मैं उससे आभूषण बनवाऊंगी .''
- '' ठीक है बनवा लेना . मेरी एक ही तो बहू हो....।''
सास बहू का वातार्लाप पूरा भी नहीं हुआ था कि परमसुख पहुंचे . पांच ब्राम्हणों का भोजन उन्हें उदरस्थ करना था इसलिए एनिमा लेकर पेट साफ कर चुके थे . साथ ही भांग का गोला भी छानना नहीं भूले थे . उन्होंने कहा - '' रामू की मां, मैने जो दान देने की सूची दी थी उसके अनुसार सूची निकालो ताकि प्रायश्चित कार्य संपन्न कराने का शुभ मुहूर्त भाग न जाय .''
रामू की मां ने कहा - '' कैसा प्रायश्चित ! बिल्ली तो भाग गई .''
परमसुख दो पांव पीछे हटे . उनके हाथ से शास्त्रों का झोला गिर पड़ा . आश्चर्य होकर पूछा - '' क्या कह रही हो ?''
- '' हां महाराज, आप से झूठ थोड़े ही बोलूंगी . देख लीजिये , बिल्ली अपने स्थान पर नहीं है .''
पंडित जी ने उधर देखने के बदले अपने को सम्भाला . वे हारे हुए जुआरी की तरह जीत का भाव लाते हुए बोले - '' तो तुम समझ रही हो कि बिल्ली अपने आप जीवित हो गई लेकिन यह तुम्हारा भ्रम है . मैंने यमदूतों के साथ जमकर युद्ध कर उन्हें परास्त किया . साथ ही पूरे एक सौ आठ बार संजीवनी मंत्र का जाप किया तब बिल्ली के प्राण लौटे . इस उपकार के बदले अब मैं दोगुना दान लूंगा .''
रामू की मां ने सहज विश्वास कर लिया लेकिन बहू कब मानने लगी . बोली - क्यों झूठ बोलते हैं . बिल्ली को चोंंट कम लगी थी इसलिए वह जिंदा हो गई . इसमें दान पुण्य का सवाल कहां से टपक पड़ा . आपमें पुर्नजीवन देने की शक्ति है तो लालू जो आज ही मरा है को जीवित कीजिये .''
परमसुख को गुस्सा तो बहुत आया . उसे पी गये . समझाते हुए बोले - '' बहू, तुम अभी बच्ची हो इसलिए लोक परलोक की बात नहीं जानती.''
- '' सब जानती हूं महाराज, आप लोग ईश्वर के नाम पर लूटते हैं .धर्म को व्यापार बना रक्खा है.''
- '' बड़ों के सामने बेढ़ंगी बातें नहीं करते. विश्व कल्याण के लिए ही पूजा पाठ, यज्ञ दान किया जाता है . विश्वास न हो तो शास्त्रों का अध्यय न कर लो .''
- '' अपना स्वार्थ पूरा करना है तो धर्मशास्थों का प्रमाण देंगे ही . लेकिन मैं विश्वास नहीं करने वाली . दूसरों का कल्याण करने के बदले अपना कल्याण करते हैं . मुफ्त की रोटी खाने के कारण ही आप मोटे ताजे है .''
परमसुख का क्रोध ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ा . वे चोंटी फटकारते हुए बोले - '' बहू , अपनी जुबान सम्हालों। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मेरे ही आशिर्वाद के कारण इस घर में राज कर रही हो . रामू की मां नि:संतान थी . वह अपने जीवन से बिलकुल ही निराश हो चुकी थी . मुझे उस पर दया आयी तो पुत्रेष्ठि यज्ञ किया जिससे रामू पैदा हुआ . विश्वास न हो तो अपनी सास से पूछ लो ?''
रामू के मां ने स्वीकारते हुए कहा - '' हां बहू, पंडित जी सौ प्रतिशत सत्य कह रहे हैं .''
बहू बोली - '' आप भी क्या दकियानूस हैं अगर पंडित जी अलौकिक शक्ति से सम्पन्न है तो कमला और विमला को जो बिना बच्चे के तड़प रही हैं, उन्हें बच्चे दे न.''
परमसुख बोले - '' वे पापिन है...।''
- '' पापिन नहीं, वे बच्चे जन ही नहीं सकती क्योंकि उनमें जन्म देने के लक्षण है ही नहीं .''
परमसुख बहू के तर्क के आगे घुटने टेकने लगे तो क्रोध्रास्त्र चलाया - '' बहू, मुझसे लड़ने का परिणाम बहुत बुरा होगा . जब मैं जीवित कर सकता हूं तो मारण मंत्र से मैं सबको भस्म भी कर सकता हूं .''
बहू ने कहा - '' जो मन में आये कीजिये लेकिन इस घर से फूटिये तो...।''
रामू की मां जो बेहद घबरा गई थी, ने बहू को डांट लगाई - '' करम जली बहू , तू चुप रह विद्वानों से चिकचिक करते तेरे मुंह में छाले क्यों नहीं पड़ जाते।'' फिर वह परमसुख से बोली - '' विप्रवर, आप ज्ञानी है . अबोध बहू की बातों पर ध्यान मत दीजिये .''
परमसुख बोले -'' कैसे ध्यान न दूं ? तुम्हारी बहू है तो अपने सिर पर चढ़ा कर रखो . मेरा अपमान करने वाली होती कौन हैं . अब इस घर में एक पल भी नहीं ठहर सकता .''
परमसुख पैर पटकते हुए चलने लगे कि रामू की मां ने उनके पैर पकड़ लिए . वह घसीटा खा रही थी कि मिसरानी, किसनू की मां, और छन्नू की दादी जो महिला पंच थीं आ गई . वे एक साथ बोली - '' पंडित जी, आप बहुत रुष्ट दिख रहे हैं . इसका कारण हमें भी तो बताइये !''
परमसुख ने कहा - '' नहीं बताऊंगा . बस इतना जान लो कि बहू ने जो दुर्व्यवहार मुझसे किया है उसके बदले लाला धनीराम के स्वर्ग गये बाप दादाओं को नर्क में फिकवा कर रहूंगा यही नहीं उनका घर गृहस्थी भी उजाड़ दूंगा . मुझसे द्रोह करने का फल भोगे .''
पंडित जी चांवल में मंत्र मारकर रामू के घर में फेकने लगे . मिसरानी बोली - '' बहू को मालूम नहीं कि ब्रह्म- श्राप कितना भंयकर होता है . वे चाहे तो राजा को रंक और रंक को राजा बना देते है . एक बार दीपचंद ने इनकी खिल्ली उड़ाई थी तो उसे दो लाख का घाटा लग गया था.''
किसनू की मां ने साथ दिया - '' मैं इनसे अच्छी तरह परिचित हूं . बिहारी को त्रिनेत्र खोल कर देखा तो वह वहीं राख हो गया .''
छन्नू की दादी ने रामू की मां को छिड़की दी - '' बहू नासमझ है लेकिन तुम तो सियानी हो . पंडित जी के कारण तुम्हारा परिवार हरा भरा है फिर भी उनके शरण में क्यों नहीं गिरती ?''
रामू के मां ने बार - बार माथा रगड़े तथा पंचों ने भी बहुत अनुनय - विनय किया तब कहीं परमसुख रूकने को तैयार हुए . वे अंदर से प्रसन्न थे पर कड़ी भाषा प्रयोग करते हुए बोले - '' पंच के मुख से परमेश्वर बोलता है . तुम सब कहती हो तो ठहर जाता हूं .''
बहू की इच्छा हुई कि परमसुख को दुत्कार कर भगा दे लेकिन पंच परमेश्वर की डांट से चुप रहना पड़ा . पंडित जी पालथी मार कर बैठ गये तो छन्नू की दादी ने पूछा - '' हां, अब बताइये महाराज, अपनी नाराजगी का कारण ?''
परमसुख सविस्तार बताने लगे -तुम लोगों को ज्ञात ही होगा कि बहू ने जानबूझ कर बिल्ली की हत्या की थी , वह भी ब्रह्म मुहूर्त में इस पाप के बदले नर्क मिलता ही . नक से मुक्ति दिलाने के लिए मैँ हुम हवन भी कराने वाला था लेकिन मैंने देखा कि गली - गली में बहू की बदनामी हो रही है . लोग कह रहे हैं - '' धनीराम की पतोहू महाचनडालिनी है . वह बिल्ली को मार सकती है तो किसी दिन मनुष्य का गर्दन भी मरोड़ देगी . मैं सदैव से इनका हितैषी रहा हूं . बहू पर कलंक न लगे इसलिए बिल्ली को जीवित कर दिया अब सुनो इस उपकार के बदले जी खोलकर दान पुण्य करना चाहिए पर वह तो दूर रहा ऊपर से मेरा मखौल उड़ा रहे हैं .वाह रे कलयुग !''
किसनू की मां ने पंडित जी का पक्ष लेते हुए कहा - '' क्या दुघर्टना है ? अमृत बांटने वाले को ही मारने की योजना बन रही है .''
मिसरानी ने रामू की मां से कहा - ब्राह्मणों का क्रोध होकर लौटना अहितकर होता है . शनि का प्रकोप करा देंगे . भविष्य चौंपट कर देंगे इसलिए इन्हें किसी भी प्रकार से संतुष्ट करो .''
रामू की मां परमसुख के चरणों में पुन: गिरी.बोली - '' विप्रवर, बहू की गलती के लिए मैं क्षमा मांगती आप चाहे जो ले लीजिये लेकिन नाराज होकर मत जाइये .''
परमसुख का मुख मंडल चमक उठा . बोले - '' मैं लालची तो हूं नहीं , बस दस क्विंटल चांवल, दो क्विंटल गेहूं , एक क्विंटल दाल और दस किलो गाय का शुद्ध घी चाहिए इतने में मैं पूर्ण संतुष्ट पा लूंगा .''
रामू की मां की आंखें फैल गई . बोली - '' आप तो गजब कर रहे हैं.प्रायश्चि त कराने के लिए जो सामान देना तय हुआ था उससे दो गुना वसूल करने पर तुले हैं .''
- '' बिल्ली को जीवन देने और बहू के अपराध को क्षमा करने के बदला दो गुना दान तो देना ही पड़ेगा . अरे हां , ढ़ाई सौ ग्राम सोने की बात भूल ही गया . वे भी तो दान की सूची में सम्मिलित है.''
- '' क्या ?''
- '' हां , पंच परमेश्वर रामू की मां की शंका का समाधान करें .''
पंचों से रामू की मां से कहा - '' पंडित जी की मांग ही अधिक कहां है , जो चीख रही हो . अगर हमें हमारा घर भी मांगते तो उन्हें सहर्ष सौंपकर खाली हाथ निकल जाते.''
रामू की मां ने प्रार्थना की - '' फिर भी बहुत हो रहा है. कुछ तो कम हो.''
परमसुख दयालू व्यक्ति तो थे ही.बोले - '' चलो , तुम्हारी ही बात मान लेता हू . दस ग्राम सोना कम दे देना . अपनी आत्मा को समझा लूंगा .''
रामू की मां ने सभी वस्तुएं श्रद्धापूर्वक पंडित जी के चरणों में अपिंर्त कर दी . परमसुख ने देरी किये बिना सामानों को अपने घर भिजवा दिये और वापस होते हुए बोले - '' रामू की मां किसी बात की चिंता मत करना . कभी भी दुख पड़े तो बेहिचक बुला लेना . कष्ट करने के लिए तैयार रहूंगा.
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