छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

रविवार, 28 अगस्त 2016

स्‍वागतम

       ओणम का वह पावन दिवस। लोग प्रसन्न हैं। उत्साहित है। स्त्रियों के जूड़ों में फूल की मालाएं सजी हैं। वे नवीन वस्त्रों में सुशोभित हैं। आज राजा बली अपनी प्रजा का हालचाल जानने आने वाले हैं। उनके भोग के लिये पायसम खीर और अनेक स्वादिष्ट व्यंजन हैं। कत्थक कली का नृत्य आयोजित है। राजा के आसीन होने के लिये सिंहासन तैयार है। प्रजा महादानी के स्वागत के लिये अधीर है।
तभी वहां इन्द्र आये। वे प्रसन्न हुए। सोचा- मैं राजा हूं। प्रजा मेरा सत्कार करने तैयार है। वे सिंहासन पर बैठने आगे बढ़े। पर यह क्या- लोगों ने उन्हें रोक दिया। कहा- यह सिंहासन आपके लिये नहीं राजा बली के लिये है। इन्द्र नाराज हो गये। कहा- मैं वर्तमान में शासक हूं। बली अभी सत्ता में नहीं है। फिर उसका मान सम्मान क्यों?
लोगों ने कहा- वे पद पर थे तब सभी कष्टों को दूर किया। समस्याओं का निवारण किया। आज मात्र उनका स्वागत करेंगे?
इन्द्र फुंफकारते हुए वहां से हटे। विष्णु के पास गये शिकायत की- मैं शासक हूं पर मेरा सम्मान नहीं। उधर बली सत्ता से दूर है पर लोग उसके स्वागत में आंखे बिछाये बैठे हैं।
विष्णु ने कहा- जनता का निर्णय सहीं है। तुम राजा हो। प्रजा की देखभाल करते। पर तुम सोमरस पान करके पृथ्वी को उलट पुलट करने का हुंकार भरते हो। अप्सराओं से नृत्य गान कराते हो। विलासिता में डुबे हो ़ ़ ़ ़तुम्हारा बिगड़ैल पुत्र जयंत अमृत समुद्र मंथन को चुराकर इधर उधर भागता है। वह सती नारी सीता को परेशान करता है ़ ़ ़ ़मैंने तुम्हें वद दिलाने बली से छल किया। अपना स्वरूप बदला। कौस्तुम मणी से जड़ित हार को उतारा। वल्कल वस्त्र पहना। मैं धन बांटने वाली लक्ष्मी का पति हूं पर भिक्षा पात्र पकड़ा। मेरा विराट स्वरूप गीता जगत में प्रसिद्ध है पर वामन रूप छोटा या विप्र लेना पड़ा। मैंने द्रुतगामी गरूड़  को छोड़ा और पदयात्रा की ़ ़़ ़ ़मैंने सदाचारी निर्लोभी बली से सत्ता छोड़ने का आग्रह किया। बस इतने में ही वह सत्ता और वैभव छोड़कर चला गया। मुझे खुशी है। आज उसका सम्मान हो रहा है।
विष्णु ने इन्द्र को पुन: चेताया- सत्ता यश पद धन अस्थायी है। सत्ताधारी जनता की सेवा करें। धनपति दीन की सहायता करें। बलवान भी निर्बल की रक्षा करें ़ ़ ़ ़अगर तुमने शासन काल में जनसेवा की तो निर्वासन के बाद भी जनता तुम्हारे आगमन की राह देखेगी।
इन्द्र  शांत हो गये। उन्हें समझ में आ गया कि बली वर्तमान में सत्ता से दूर हैं पर जनहितैषी होने के कारण लोगों के दिलों पर राज कर रहें हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें