छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

आस्‍था का प्रतीक

                                                        आस्था का प्रतीक
 मंगलवार को हनुमान का वार के नाम से प्रसिद्धि मिली है। इस दिन उनकी विशिष्ट पूजा अर्चना होती है।
वे अपने भक्तों से भेंट करने निकले। आगे में हनुमान मंदिर था। लोगों की भीड़ थी। वे भक्ति भाव से हनुमान चालिसा का पाठ कर रहें थे। मूर्ति के ऊपर श्रद्धा के फूल चढ़ा रहें थे।
अचानक उन्होंने मूर्ति का स्वरूप देखा। वे दंग रह गये- मूर्ति की आकृति बंदर जैसी थी। उसके पीछे पूंछ लटकी थी। हनुमान ने भक्त से पूछा- यह किसकी मूर्ति है?
भक्त ने बताया- हनुमान की। लगता है- आप हनुमान को नहीं जानते।़
अच्छी तरह जानता हूं। पर इसका मुंह बंदर जैसा है। इस मूर्ति के पीछे पूंछ लटक रहीं है।
हनुमान बंदर थे तो पूंछ लटकना स्वभाविक है। इसी पूंछ पर लंका वासियों ने आग लगाई थी। तब हनुमान जी ने लंका को जलाकर खाक किया था। हनुमान ने वास्तविक जानकारी देने की कोशिश की। कहा- हनुमान मनुष्य थे। वे वानर जाति से संबंधित थे।
भक्त हंसा। कहा- इसका मतलब मैं झूठ कह रहा। आप लोगों से सत्य तथ्य पूछ लीजिये।
हनुमान ने उपस्थित समुदाय से पूछा लेकिन सभी ने भक्त का समर्थन किया।
हनुमान भ्रम और असत्य के आगे हार गये। वे दूर निकल गये। शाम हुई। वे पुन: मंदिर में आये। लोगों की भीड़ छंट गई। मात्र पूजारी रूका रहा। उसने हनुमान को प्रणाम किया आरती गाई-
आरती कीजै हनुमान लला की
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की
हनुमान ने पूछा- तुम मुझे पहचानते हो- मैं कौन हूं?
पुजारी ने कहा- आप राम और सुग्रीव में मित्रता कराने वाले हनुमान हैं। आपने सीता का पता लगाया। मूर्छित लक्ष्मण के लिये संजीवनी का प्रबंध किया।
तुम्हें ज्ञात है कि मैं मनुष्य हूं तो मूर्ति में बंदर का रूप क्यों दिया? इसमें परिवर्तन करो। मनुष्य की मूर्ति लगाओ। यह सत्य है कि लेखकों ने व को ब लिखा। वानर से बानर। चित्रकारों मूर्तिकारों ने भी बंदर का स्वरूप दे दिया। लोगों में बानर की छवि अंकित है। इसी स्वरूप पर उनकी श्रद्धा भक्ति है। यहां मनुष्य की मूर्ति लगवा भी दूं तो लोग नहीं स्वीकारेंगे। इस पर ही श्रद्धालु चढ़ावा चढ़ाते है। मुझे दान दक्षिणा देते है। तब मैं अपनी जीविका चलाता हूं- आप इसी मूर्ति को स्थापित रहने दीजिये।
हनुमान विवश हो गये। कहा- मैं किसी की जीविका नहीं छीनना चाहता। मुझे खुशी है कि लोग मेरे कार्यों का गुणगान करते हैं। मेरी कामना है- मैं उनके हृदय में संकट मोचक के रूप में विराजमान रहूं।

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