छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

रविवार, 28 अगस्त 2016

बाललीला

नूतन प्रसाद

 गोपाल सदा बिमार रहता था। उसके माता पिता उपचार कराते इस डॉक्टर के बाद उस डॉक्टर के पास। एलोपेथी आयुर्वेदिक याने दवाइयों का ढ़ेर गया। मगर कोई लाभ नहीं हुआ। शरीर क्षीण होता गया।
एक दिन शुभचिंतक ने कहा कि कृष्ण कथा का आयोजन कर लो। माता पिता मान गये। मैं भी कृष्ण की जीवनी से प्रभावित हूं। तो गया। पण्डित जी कथा कहने लगे- कृष्ण ने बकासुर को मारा। कुबलिया हाथी को मारा गोपाल ने पूछा- क्या वास्तव में कृष्ण ने वीर योद्धाओं और अपने से कई गुना वजनी और ताकतवर हाथी को मारा?
पण्डित जी बोले- कृष्ण भगवान हैं। उन्होंने गोवरधन पहाड़ को भी उठाया।
गोपाल ने निराश होकर कहा- हां भई, हम बिमार हैं। हम क्या किसी वीर से युद्ध करेंगे या अपने से कई गुना वजनदार वस्तु को उठायेंगे।
पण्डित जी ने आगे बताया- महाभारत में युद्ध हुआ। इसमें अस्त्र- शस्त्रों का जमकर प्रयोग हुआ। सैनिक मरते गये। उनके शरीर से खून गिरता गया। लाशें बिछने लगी। कृष्ण ने रथ का पहिया लेकर भीष्म पितामह पर आक्रमण किया।
गोपाल उक्त दृश्यों का चिंतन करने लगा। वह भय से कांपने लगा। पण्डित जी ने फिर बताया। कृष्ण ने अपना विराट स्वरूप दिखाया। उसमें पूरे संसार को समाहित बताया। कई सूर्य, चंद्रमा, डरावने प्राणियों का उल्लेख बताया।
बेचारा गोपाल अब कृष्ण के नाम से घबराने लगा। चलते चलते मैंने कह दिया कि मैं भी कृष्ण कथा कहता हूं।
कुछ पश्चात ऐसा संयोग बना कि गोपाल मेरे घर आया। यहां दीवाल में बाल लीला के चित्र लगे थे- कृष्ण दही खा रहें हैं। गाय चरा रहें हैं ़ ़ ़ ़कदम्ब पेड़ पर बंसी बजा रहें हैं। बाल सखाओं के साथ यमुना किनारे गेंद खेलते नजर आये। गोपाल ने पूछा- ये किसके चित्र हैं?
मैंने बताया- कृष्ण के
गोपाल की उत्सुकता जागी। कहा- कृष्ण तो मेरे ही उम्र के हैं। अब मैं भी दहीं खाऊंगा। सहपाठी के साथ खेलूंगा।
मैंने कहा- हां, हां। कृष्ण तुम्हारे सखा हैं। खेलो कूदो उधम मचाओ। पेड़ पर चढ़ो। नदी में नहाओ।
गोपाल घर आया। उसने फ्रिज से दहीं निकाला। खाया। केला अंगूर का स्वाद लिया। मन में कहा- कृष्ण का दूसरा नाम गोपाल है। मैं भी गोपाल हूं। उनके कार्यों का अनुशरण करूंगा।
गोपाल घर की सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने उतरने लगा। पहले सांसे फूलती थी। अब अभ्यास से धड़धड़- धड़धड़ चढ़ने उतरने लगा। उसने देखा कि मित्र फुटबाल खेल रहें हैं तो गोपाल भी फुटबाल के साथ दौड़ने लगा।
एक दिन पिता ने पूछा- क्यों गोपाल, सहीं वक्त पर दवाई ले रहे हो न?
गोपाल ने कहा- हां तभी देखो न मेरा स्वास्थ्य सुधर रहा हैं।
गोपाल को दवाई खाने की आवश्यकता नहीं थी। उसने सारी दवाईयां फेंक दी। मां हर वक्त पुत्र के स्वास्थ्य का ख्याल रखती। उसने देखा कि दवाईयां फेंक दी गई हैं। वह चींखने लगी- गोपाल कहां हो।़ तुम्हारी तबियत कैसी हैं।़ तुम्हें डॉक्टर के पास ले जाऊंगी।
गोपाल घर में नहीं था। मां ढूंढ़ने निकली। एक व्यक्ति ने बताया- तुम्हारा गोपाल नदी की ओर गया है। अब तो मां को गहरा सदमा लगा। वह नदी के किनारे गई। वहां एक पेड़ था। पेड़ पर चढुकर गोपाल बांसुरी बजा रहा था। मां घबरा गई। कहा- बेटा- नीचे उतर। तुमने कभी पेड़ पर चढ़ा नहीं। नदी में नहीं नहाया।
गोपाल नदी में छुपाक से कूदा। तैरकर बाहर निकला। पुन: पेड़ पर चढ़ गया। गाने लगा- यह कदम्ब का पेड़ अगर मां होता यमुना तीरे मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे।
गाना समाप्त हुआ। गोपाल नीचे उतरा। कहा- कृष्ण मेरे सखा हैं। उनकी लीला ने मुझे साहस दिया। आज मैं स्वस्थ और सानंद हूं।

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