छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

समझौता

          सुदामा तीन दिनों से खाये नहीं थे . निराश हो वे आत्महत्या करने जा रहे थे कि ग्रामवासी आ गये . बोले - '' महाराज, आप विद्वान है . वेद शास्त्रों के ज्ञाता हैं . आप ही कहते फिरते हैं कि आत्मघात करने से नर्क मिलता है. लेकिन अपने ही हाथों से प्राण देने क्‍यों तुले हैं ?''
सुदामा रो पड़े . बोले - '' भाइयों , पेट खाली हो तो शास्‍त्र काम नहीं आते . जीवित रह कर कौन सा स्वर्ग भोग रहा हूं.तड़प - तड़प कर मरने से जल्दी मर जाना अच्छा है .''
- '' तो हमें भी रस्सी दीजिये , आपके साथ मरेंगे .''
- '' मेरे साथ तुम क्‍यों प्राण दोगे ?''
- '' हम मरेंगे साथ में भारत के वे लोग भी मरेंगे जिनकी स्थिति आपके समान है . जब कृष्ण सरीखे शासक आपके मित्र है इसके बावजूद हतोत्साहित हो रहे हैं तो हमारे हितैषी क्षेत्रीय  विधायक भी नहीं है .''
- '' कृष्ण का नाम मत लो . गुरू के आश्रम में पढ़ते थे तब से जानता हूं . वे कितने झूठे हैं . असत्य  के बल पर वे राजा बन गये और मैंने ईमानदारी दिखाई तो कंगाल के कंगाल रह गया .''
- '' आपने कृष्ण की आलोचना की। मिथ्यावादी कहा लेकिन कैसे।''
-  '' एक दिन गुरु की आज्ञा मानकर हम लकड़ी लाने गये। कृृष्ण बड़े घर का लाडला था। अत: नीचे खड़ा रहा और लकड़ी काटने मुझे झाड़ पर चढ़ा दिया। उस दिन ठंड अधिक थी। मेरे दांत बजने लगे। उसे ही कृष्ण ने दरबारी लेखकों से लिखवा दिया कि सुदामा पेड़ पर चढ़ कर मजे से चना खा रहा था। मैं नीचे खड़ा भूखा मर रहा था। मैं गरीब होकर बदनाम हो गया। उनका यश चारों ओर फैल गया, जो आज तक बरकरार है। मेरे हाथ में जो फफोले पड़े थे उनका जिक्र तो कहीं होता।''
         सुदामा की राम कहानी सुनकर ग्रामीण दुखी हुए . बोले - विद्यार्थी जीवन की बात भूल जाइये . एक  बार जनता की ओर से पत्र व्यवहार कर देखिये.क्‍या कहते हैं ?''
- मैंने कई चिट्टियां भेज डालीं लेकिन सहायता की कौन कहे ,  उत्तर तक नहीं आया .''
- '' तो स्वयं जाकर उनसे मिल ले यदि इस बार उपेक्षा की तो उनके विरूद्ध कदम उठायेंगे . फिर देखेंगे -  वे सत्ता पर कैसे बने रहते हैं .''
       लोगों की बात मानकर सुदामा राजधानी जाने तैयार हो गये . उन्होंने गमछे में चांवल बांधा और प्रस्थान किया . वे कृष्ण के पास पहुंचे और हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया तो कृष्ण ने कहा - '' तुम कौन हो मैं जानता तक नहीं . हाथ मिलाने की हिम्मत कैसे कर रहे हो ?''
- '' मैं आपके सहपाठी सुदामा हूं . भूल गये !''
- '' विद्यार्थी जीवन में मित्र बनते - बिगड़ते रहते हैं और फिर तुम्हारें जैसे हजारों मिलने आते हैं , किस - किस का ख्याल रखूं  ?''
- '' मत रखिये, जिस दिन क्रांति होगी तब पता चलेगा .''
- '' मेरे राज में सब सुखी है फिर क्रांति कौन करेगा .''
- '' जनता करेगी, वह तुम्हारे शासन से तंग आ चुकी है .''
       कृष्ण चकित हुए. बोले - '' तुम्हारी बातों पर विश्वास नहीं होता . मुझे इसके संबंध में किसी ने नहीं बताया.सब मेरे कार्यों की प्रसंशा कर रहे हैं .''
सुदामा ने कहा - '' अधिकारी और व्यापारी ही प्रसंशा कर रहे होगें क्‍योंकि उन्हें अपने स्वार्थ सिद्ध करने है . कभी जनता से सम्पर्क किया होता तो वास्तविकता का पता चलता .''
- '' क्‍या सच  कह रहे हो ?''
- '' नहीं तो क्‍या झूठ  ?''
        सुदामा ने जनता के द्वारा लिखी चिट्टिठी दिखा दी . कृष्ण ने पत्र पढ़ा तो ऐसा आभास हुआ कि कुर्सी छिन रही है . उन्होंने घबरा कर कहा - '' मित्र तुम्हारे साथ जो अभद्र व्यवहार किया उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं. .गद्दी सुरक्षित रखने के लिए कोई रास्ता निकालो .''
सुदामा बोले - '' जब वकील फीस लिए बिना कोई बात नहीं करता आपके अधिकारी जमीन छीन कर भी किसानों से रूपये ऐंठ लेते हैं तो मैं क्‍यों और कैसे मु्फ्त में सलाह दूं .''
- '' आपको जो चाहिए, मैं देने को तैयार हूं .''
        कृष्ण और सुदामा के बीच  लेन - देन की बातचीत शुरू हुई . सुदामा ने अपनी इच्छा भर धन ऐंठ लिया . उसके बाद फिल्म निर्माता को बुलाया और कहा कि हम दोनों जो भी नाटक खेल रहे हैं उन्हें फिल्माया जाये .
नाटक प्रारंभ हुआ - कृष्ण सुदामा के पैर धो रहे हैं . प्ले बैक से गाना बज रहा है - '' पानी - परात को हाथ छुए नहि नैनन के जल से पग धोये.....'' सुदामा चांवल की पोटली को इधर से उधर छिपा रहे है . कृष्ण उसे खींच रहे हैं . आखिर कृष्ण ने पोटली खींच ही ली और चांवल प्रेम से खाने लगे.वे दो मुट्ठी चांवल खा चुके थे . इतने में रूखमणी दौड़ कर आयी . उसे नाटक का रहस्य  मालूम नहीं था . उसने बोला - '' जिस चांवल को हमारी महरी भी नहीं खाती उसे आप क्‍यों खा रहे हैं . स्वास्थ्य  बिगाड़ने की इच्छा है क्‍या ?''
कृष्ण बोले - '' तुमने पूरा सीन खराब कर दिया.पेट के अंदर चांवल गया ही कहां . वो देखो, मुंह में लेकर जमीन में थूंका है .''
उन्होंने कैमरा मैन को पुन: कहा - '' बीच  का रील उड़ा दो .''
       कैमरा मैन ने बीच  की रील उड़ा दी . जब फिल्म तैयार हो गई तो प्रचार किया गया कि कृष्ण दीन वत्सल है . सुदामा जैसे गरीब आदमी के पैर धोये . उनकी कृपा से ही सुदामा कंगाल से धनवान बन गये . जो भी कृष्ण के प्रति भक्तिभाव रखेगा, उसके दिन फिरेंगे .''
       सुदामा गांव पहुंचे तब तक कृष्ण और उनके मिलन का समाचार सर्वत्र फैल चुका था . लोगों ने कहा -'' महाराज, आप रंक से रईस बन गये लेकिन हमारी स्‍िथति में जरा भी सुधार नहीं आयी इसलिए कृष्ण के खिलाफ आंदोलन छेड़ना चाहतें हैं . आप साथ देंगें कि नहीं ?''
सुदामा बोले - '' मैं अहिंसावादी हूं लड़ाई - झगड़े से सख्त नफरत है .''
- '' तो फिर क्‍या करें ?''
- '' कृष्ण बड़े दयालू है . जो भी मेरी तरह समर्पित भावना से उनकी शरण में गिरता है . उसे हर वस्तु सरलता से प्राप्‍त हो जाती है . इसलिए तुम भी उनका विरोध करने का विचार त्याग ही दो . फिर देखों - कैसे कष्‍ट दूर होते हैं.''
       सुदामा की बात मान कर लोगों ने क्रांति का रास्ता छोड़ दिया . वे कृष्ण की भक्ति में लग गये . वे आज तक कृष्ण की पूजा श्रद्धापूर्वक कर रहे हैं लेकिन उनकी स्‍िथति ज्यों की त्यों है .

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