नूतन प्रसाद
इन दिनों वन विभाग चिंता की चिता में जल रहा था . जंगलों से धड़ाधड़ लकड़ियां चोरी हो रही थीं . वन्य पशुओं का अपहरण हो रहा था . कन्दमूल समूल नष्ट होने के कगार पर थे.... ये शुभ कर्म रात में सम्पन्न होते तो कोई बात नहीं . सूर्य के प्रकाश में ये गोरख धंधे चल रहे थे . चोर इतने बहादुर और बुद्धिमान थे कि उन्हें दाद देने को मन ललचाता था . वे वन विभाग की सजक र्आंखों में धूल झोंकते और माल लेकर उसकी आंखों से ओझल हो जाते . बेचारे वन विभाग का सिर्फ एक कार्य बच जाता - आंखें फाड़कर देखने का . अंत में वन विभाग ने सोचा - क्यों न बैठक बुला ली जाये! जिसमें के रोकथाम के कारगार उपायों पर निर्णय लें . वैसे इस बैठक को सफल बनाने कई बैठकें सम्पन्न हो चुकी थी . विवाह के पूर्व दो चार प्रेमिकाएं रख लीं जाएं तो बाद का वैवाहिक जीवन आन्नदमय हो जाता है . सूचना मिली कि वन विभाग के लोग आ गये . वे इस तरह गंभीर थे मानो पतझड़ हो गया हो . जिस हाल में बैठक होने वाली थी , उसे गुफे का रूप दिया गया था. साथ ही वह सजा था - सागौन के कुर्सी - टेबलों और जंगली फूलो से.
बिना दूल्हें की बारात और नेता के बिना हड़ताल की शोभा न्यारी नहीं होती.यहां भी अध्यक्ष के बिना बैठक अधूरी हो जाती इसलिए अध्यक्ष का चुनाव किया गया . अध्यक्ष महोदय प्लान्टेशन के पेड़ की तरह तनकर खड़े हुए.बोले - '' मित्रों मैं न नेता हूं न व्यापारी जो भाषण झाड़ूं और अपनी बातों का सच झूठ कर मिलावट करूं . मैं ठोस शब्द आपके कान में डालना चाहूंगा कि जंगल नष्ट हो रहे हैं . इससे पर्यावरण को खतरा उत्पन्न हो गया है . यदि जंगल समाप्त हो गई तो सभी प्राणियों को स्वर्ग का दर्शन करना पड़ जायेगा . हम सदा से मानवता के पुजारी रहे हैं इसलिए जंगलों को बचना हमारा कर्तव्य है. इसके लिए आप से उपाय आमंत्रित है . बहस हो जाये तो सोने में सुगंध हो जायेगा......?''
बैठक की पहली पाली का दिवाला निकल गया . उपस्िथत सभी वृन्द का दिमाग हो चुका था गर्म. शर्बत की आवश्यकता थी. एक ने कहा - '' दूकान से लिम्का, आरेंज बुला लें ?''
दूसरे ने झिड़की दी - '' यहां दुनिया में आत्मनिर्भर होने के नारे लग रहे हैं और तुम्हें दूसरों के पांव पर नाक रगड़ने की सूझी है . हम स्वयं सक्षम हैं . शहद का स्टाक भरा पड़ा है . उसका ही उपयोग क्यों न करें ?''
शहद आया. शरबत बनी . उन्होंने इतनी पी कि गर्म दिमाग पटरी पर आ गया . दूसरी पाली प्रांरभ हुई . बहस चली जिसमें वे दो दल में विभक्त हो गये . कबड्डी खेल का दृष्य उपस्थित हो गया था . कभी एक दल विजयी होता तो कभी दूसरा दल . तू - तू से लेकर पटका - पटकी हुई तब कहीं परिणाम का जन्म हुआ . सुझाव चार प्रकार के थे -
(1) जंगलों के चारों ओर खाई खोद दी जाय .
(2) हमें सरकार ने बंदूक दी है उनका उपयोग न हुआ तो जंग लग जायेगा इसलिए जिन्हें पाये उन्हें धूंकें . इससे लोग डरकर जंगल में पैर रखने से घबरायेंगे तो चोरी होने का सवाल कहां ?
(3) जंगल के पास के सभी गांवों को जंगल में बदल दिया जाये. ग्रामीण नहीं रहेंगे तो चोरी कौन करेगा ?(ग्रामीणों के सिवा दूसरा कोई चोर होता ही नहीं )
(4) जंगल के चारों ओर पहरा दें । हम रहेंगे तो कोई फटकेगा भी नहीं.
मतदान हुआ तो चौथे प्रस्ताव को विजय श्री मिली . बैठक ने काफी समय ले लिया था तो भूख लगना स्वाभाविक था . एक ने कहा - '' दाल भात हमेंशा खाते हैं . कोई स्पेशल आइटम हो तो मजा आ जाये .''
दूसरे ने कहा - '' मुर्गा और डिप्लोमेट चलेगा ?''
तीसरे ने कैची चलायी - '' कदापि नहीं,हम कुक्कुट पालन और आबकारी विभाग के थोड़े हैं. हम हैं वन विभाग के.विभागीय वस्तुएं वापरेंगे. खरगोश,हिरण हैण्डब्राण्ड हो तभी ग्रहण करेंगे.अपने विभाग का कल्याण भी तो करना है.''
बात सच थी.शिक्षा विभाग वाले चाकमिह्वी, चाकमिट्टी , टाटपट्टी और गणवेश खा ले तो शिक्षा में क्रांति आयेगी। कृषि विभाग के लोग किसानों की जमीनें खा लें तो अन्न उत्पादन अधिक होगा। कहने की देर थी, भोजन की तुरंत व्यवस्था हुई। वे भूखे भेड़िये तो थे, डंटकर पीयें और खाये। खाते - पीते तो उनके विभाग की नाक कट जाती। '' वन विभाग'' - '' जिन्दाबाद, इसके कारण जग आबाद '' के गगनभेदी नारे लगे और बैठक की पूर्णाहुति हो गई।
इस बैठक के समाचार को दैनिक पत्रों ने प्रमुखता से छापा . एक ने कहा था - '' वन विभाग सर्तक. अब से जंगलों की चोरियां बंद. पयार्वरण को कोई खतरा नहीं. वन विभाग को इस पत्र की ओर से अनेक शुभकामनाएं....।''
दूसरे अखबार को वन विभाग से विज्ञापन नहीं मिलते थे . उसकी टिप्पणी थी - '' पहले वाला अखबार पैसे में बिक चुका है. सत्यवान यह है कि वन विभाग के लोग खुद चोर हैं. अपने कुकर्म पर बुर्का डालने के लिए लीपापोती कर रहे हैं . इसकी जांच के लिए आयोग बैठनी चाहिए......।''
कुत्ते भौंकते है मगर हाथी बाजार जाने से क्यों चूके . इतना कह कर वन विभाग के लोग जुट गये जंगलों की रक्षा करने . रक्षकों के पास गोंद की कमी थी ही नहीं, वे चिपक गये वृक्षों से . उनके आंदोलन के सामने चिपको आंदोलन धराशाही हो गया . रक्षकों के जबरदस्त घेराबन्दी के कारण उन्चासों पवन जोर मारते थक गये मगर अंदर धंस नहीं पाये . सूर्य का प्रकाश जंगल के बाहर नाक रगड़ता रहा . रक्षकों को भूख लगती तो कंद मूल का भक्षण कर लेते . झरने का पानी पी लेते . कपड़े फट गये तो वृक्ष का छाल पहन लिया मगर कर्तव्य पथ से फिसले नहीं.
वृक्षों का कटना बंद था . उनमें होड़ लग गई कि अंतरिक्ष को पहले कौन चूमें ? सुनने में यहां तक आया कि कई वृक्ष चन्द्रमा तक धमक गये हैं . उन्होंने पयार्वरण बदल दिया है .अब चन्द्रमा में बस्ती बसेगी . रक्षक अपनी सफलता पर प्रसन्न् थे . एक दिन वे समूह गान कर रहे थे -
'' बाजे धिक धीना हो
हैं सागौन हमारे दादा
साजा सग्गे भाई,
तेंदू मामा, चार हैं साढ़ू
सरई हुई भौजाई.
बाजे धिक धीना हो
शेर हमारे फूफा लगते
चीता प्यारे काका,
जिसकी इच्छा प्राण गंवाने
वह आ डाले डाका
बाजे धिक धीना हो .....।''
इधर उनका गीत खत्म हुआ उधर हनुमान ने जंगल में पैर रखा . रक्षक घोड़े बेंच कर खरार्टे नहीं ले रहे थे, जो असावधान रहते . उन्होंने ऐसा चक्रव्यूह बनाया कि हनुमान पकड़ में आ गये . रक्षकों ने कहा - '' हमने आपको जंगल में मंगल मनाने के लिए नेवता नहीं दिया था जो महुआ फल बन टपक पड़े. आपको ज्ञात होना चाहिए - यहां घुसने के लिए हवा की हवा हो गई है . दर्शन करने की इच्छा फड़कती तो हम ही आपके पास दौड़ आते . यहां पधारे तो क्यों ?''
हनुमान ने कहा- '' तुम्हारा काम है जंगल की देखभाल करना . मेरा काम है जड़ी - बूटी उखाड़ना. तुम्हें अपना काम करना चाहिए मगर दूसरे के काम में लाल झंडी क्यों मार रहे हो ?''
वे जड़ी - बूटियां उखाड़ने लगे . रक्षकों ने टोंका - '' देखिए, आपने किसी भी वन्य वस्तु पर हाथ लगायी कि आप पर जुर्माना ठोंक देंगे . हम शासकीय नौकर है. आज्ञा का पालन करना ही पड़ेगा .''
हनुमान ने कहा - '' मैं भी तो आज्ञा का पालन कर रहा हूं . लक्ष्मण बेहोश पड़े हैं. उन्हें दवाई की सख्त आवश्यकता है . स्वयं राम ने मुझे भेजा है - दवाई लाने . यदि रोकोगे तो मेरा क्या , हाथ हिलाते चला जाता हूूं . प्रभु के पास तुम्हारे करतूत खोल दूंगा .''
अब तो रक्षकों के होश हुए गुम . उन्होंने राम की वंदना की - '' वाह भगवन, एक ओर तो हमें जंगलों की रखवाली करने की आज्ञा दी . दूसरी ओर से हनुमान को भेज दिया कि पहाड़ उखाड़ लाओ.अब हम और हनुमान लड़ेंगे. भक्तों को आपस में बैर कराना , मार काट करना कोई आपसे सीखे......। लोग सोच रहे होंगे कि राम निष्कासित है . उनके हाथ में सत्ता नहीं है मगर जूते शासन चला रहे हैं , इसे कोई नहीं जानता. रक्षकों ने हनुमान से कहा - अब केहि काज बिलंब - आपको जो चाहिए ले जाइए. पहले पता होता कि राम अपने भाई की भलाई करना चाहते हैं तो हम बाधा क्यों बनते ! आखिर हमें भी तो उनके बताये मार्ग पर चलना है कि अपने परिवार - संबंधियों का ही उपकार करना है.....।
हनुमान वहां प्राकृतिक सौन्दर्य का अवलोकन करने थोड़े ही गये थे . वे अपने समय की बलि देते . उन्होंने पूरा पहाड़ उखाड़ा और वहां से चलते बने . हनुमान रवाना हुए कि वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी को इस घपला कांड की भनक लग गई . उन्होंने तत्काल कारण बताओं नोटिस दी - तुम लोगों की उपस्िथति में जंगल राख हुआ. इस दुष्कर्म में तुम लोगों के हाथ का कमाल है . इसलिए क्यों न तुम लोगों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाय ! यदि अपने को दूध का धुला प्रमाणित करना है तो सात दिनों के अंदर स्ष्पटीकरण भेजो वरना निलंबित करने का कागज तुम्हें त्रिशंकु बना देगा.....।
रक्षकों के ऊपर तो गाज गिर गया. वे स्ष्पटीकरण देते तो क्या ,वहां हालात प्रत्यक्षमं किं प्रमाणम् थी. वे निलम्िबत कर दिये गये . उनके बिना जंगलों की रक्षा नहीं हो पा रही थी इसलिए वरिष्ठ अधिकारियों ने नई नियुक्तियां कर दी . दरअसल अधिकारी महोदय समाजवाद के पक्के समर्थक थे . वे अपनी जाति अपने समाज के उत्थान के लिए शहीद होने सदा तैयार रहते थे . नवनियुक्तियों में उनके साले, भतीजे और पुत्र ही थे.
इधर निलम्िबत रक्षक आकाश से गिर कर खजूर में अटक गये थे . एक ने कहा - '' हम तो धोबी का गधा हो गये. न स्वतंत्र धंधा कर सकते न पूरा वेतन ही मिल रहा. अब खायें क्या ?''
दूसरे ने कहा - '' खेत में चले, काम करने ?''
तीसरे ने टोका - '' कैसी बातें करते हो, हम कृषि विभाग से संबंधित थोड़े ही है जो कीचड़ मे प्राण दें. रेल विभाग के लोग रिजर्वेशन दिलाने का धंधा करते हैं. बेटिकट घूमते हैं तो हम भी दूसरों का पत्तल क्यों चांटे ! क्यों न अपने जंगल से ही दाल चटनी निकाले ?''
और वे जूट गये अपने कार्य में. वे जंगलों से बांस - बल्लियां चुराते . उन्हें बेचते और जीविका चलाते . एक दिन वे रंगें हाथ पकड़े गये . पकड़ने वालों ने दण्िडत करने का प्रयास किया तो इन लोगों ने कहा - '' प्यारे, हमने ईमानदारी दिखाई तो उसका पाप भोग रहे हैं . तुम भी किसी दिन नौकरी से लात खाओगे तो हमारी जैसी दुगर्ति है , तुम्हारी भी हो जायेगी. इसलिए चोर - चोर मौसेरे भाई के सिद्धांत का पालन करो . लकड़ियां बेचो, पूंजी जोड़ोंं भविष्य में काम आयेगी.''
पकड़ने वालों ने उन्हें अपने कब्जे से मुक्ति दे दी.साथ यह भी कहा कि यदि दमदार ठेकेदार का पता मालूम हो तो हमें बताना . उसे दो-चार ट्रक सागौन लकड़ियां समर्पित करेंगे .''
इसी प्रकार निलम्िबत लोगों के दिन गुजरने लगे.वे गुजर जाते तो वन विभाग को पुण्य तिथि मनाने का मौका मिल जाता . वह अनिच्छा से दुख प्रकट करता कि - '' हमारे कर्मचारियों ने मृत्यु ने हमारी अनुमति के बिना अपने पास बुला लिया.जबकि हमें इनकी सेवा की अत्यंत आवश्यकता थी '' श्रद्धांजलि देने के साथ घोषणा करते कि इनके परिजनों को बीस - बीस हजार रूपए दिये जायेंगे....।
एक दिन निलम्िबत लोगों के लिए बड़ा शुभ दिन आया . उन्होंने दैनिक पत्र में पढ़ा कि राम सत्तासीन हो गए हैं . देश का बागडोर उनके कर कमलों में आ गया है . हनुमान उनका पी.ए. हैं.अब क्या था वे हनुमान के पास धाये हनुमान चालीसा का पाठ करते - जय जय हनुमान गुंसाई, कृपा करहुं गुरूदेव की नाई...........। हनुमान ने उन्हें देखा तो पूछा - '' तुम कौन हो ...?''
निलम्िबत रक्षकों ने कहा - '' आपकी ही कृपा ने हमें बीच मंझधार में झोंक दिया है. आपकी याददाश्त इतनी तेज कि हमें पहचानने से भी इंकार कर गये.''
हनुमान के क्लर्क ने कहा - '' हमारे गुरू ऐसे ही हैं . उन्हें अपनी शक्ति की भी याद नहीं रहती . कोई उन्हें याद दिला दे तो भले ही वे तनकर खड़े हो जायेगे.अभी ही पत्रावली उनके हाथ पर थी पर मुझ पर बौछार हो रहे थे कि पत्रावली ढ़ूंढ़कर लाओ वरना इंक्रीमेट रोक दूंगा ...।''
हनुमान को सारी बातें याद आ गयी थी.उन्होंने निलम्िबत लोगों को ले जाकर राम के पदकमल पर बिछा दिया.कहा - '' सरकार, आपके शासन मे राष्ट्रभक्तों की कोई कीमत नहीं . इनके कारण ही लक्ष्मण के प्राण बचे इसके बदले इन्हें निलम्बन का पुरस्कार मिला.ये आये हैं शरण तिहारी, इनकी पुकार सुन लीजिए .''
राम ने पुकार सुनी.वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाया.डांटा - '' तू दूसरा रावण कब से पैदा हो गया . मेरे भक्तों पर ही अत्याचार कर रहा.तुमने इन्हें निलम्बित क्यों किया....... साथ ही तुम पर आरोप है कि अपने सगे संबंधियों को नौकरी दी. भाई - भतीजावाद को बढ़ावा देने की हिम्मत कैसे हुई ?''
अधिकारी ने कहा - ''आपके कर्म ने. आपने भरत को कृषि एवं खाद्य मंत्री, लक्ष्मण को गृहमंत्री तथा शत्रुहन को सुरक्षा मंत्री का पद दिया है तो मैंने भी अपने रिश्तेदारों को नौकरी देकर आपके पदकमल का अनुशरण किया है.''
राम मुसकाये.कहा - '' ठीक है मगर इन निलम्िबत रक्षकों को पुर्ननियुत कर दो. इन बेचारों ने हमारे लिए बड़े कष्ट झेलें हैं ''
अधिकारी ने कहा - ''आप आज्ञा दे तो अपने पद के सिवा सभी कुछ इन्हें सौंप दूं. मुझे क्या, कागज पर हस्ताक्षर ही तो मारना है.''
और राम कृपा से निलम्िबत रक्षक पुन: नौकरी में आ गये.वे राम के भजन गाते वापस चले :-
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भव भय दारूणम् ।
नवकंज लोचन कंजमुख कर कंज पद कंजारूणम् ।।
इन दिनों वन विभाग चिंता की चिता में जल रहा था . जंगलों से धड़ाधड़ लकड़ियां चोरी हो रही थीं . वन्य पशुओं का अपहरण हो रहा था . कन्दमूल समूल नष्ट होने के कगार पर थे.... ये शुभ कर्म रात में सम्पन्न होते तो कोई बात नहीं . सूर्य के प्रकाश में ये गोरख धंधे चल रहे थे . चोर इतने बहादुर और बुद्धिमान थे कि उन्हें दाद देने को मन ललचाता था . वे वन विभाग की सजक र्आंखों में धूल झोंकते और माल लेकर उसकी आंखों से ओझल हो जाते . बेचारे वन विभाग का सिर्फ एक कार्य बच जाता - आंखें फाड़कर देखने का . अंत में वन विभाग ने सोचा - क्यों न बैठक बुला ली जाये! जिसमें के रोकथाम के कारगार उपायों पर निर्णय लें . वैसे इस बैठक को सफल बनाने कई बैठकें सम्पन्न हो चुकी थी . विवाह के पूर्व दो चार प्रेमिकाएं रख लीं जाएं तो बाद का वैवाहिक जीवन आन्नदमय हो जाता है . सूचना मिली कि वन विभाग के लोग आ गये . वे इस तरह गंभीर थे मानो पतझड़ हो गया हो . जिस हाल में बैठक होने वाली थी , उसे गुफे का रूप दिया गया था. साथ ही वह सजा था - सागौन के कुर्सी - टेबलों और जंगली फूलो से.
बिना दूल्हें की बारात और नेता के बिना हड़ताल की शोभा न्यारी नहीं होती.यहां भी अध्यक्ष के बिना बैठक अधूरी हो जाती इसलिए अध्यक्ष का चुनाव किया गया . अध्यक्ष महोदय प्लान्टेशन के पेड़ की तरह तनकर खड़े हुए.बोले - '' मित्रों मैं न नेता हूं न व्यापारी जो भाषण झाड़ूं और अपनी बातों का सच झूठ कर मिलावट करूं . मैं ठोस शब्द आपके कान में डालना चाहूंगा कि जंगल नष्ट हो रहे हैं . इससे पर्यावरण को खतरा उत्पन्न हो गया है . यदि जंगल समाप्त हो गई तो सभी प्राणियों को स्वर्ग का दर्शन करना पड़ जायेगा . हम सदा से मानवता के पुजारी रहे हैं इसलिए जंगलों को बचना हमारा कर्तव्य है. इसके लिए आप से उपाय आमंत्रित है . बहस हो जाये तो सोने में सुगंध हो जायेगा......?''
बैठक की पहली पाली का दिवाला निकल गया . उपस्िथत सभी वृन्द का दिमाग हो चुका था गर्म. शर्बत की आवश्यकता थी. एक ने कहा - '' दूकान से लिम्का, आरेंज बुला लें ?''
दूसरे ने झिड़की दी - '' यहां दुनिया में आत्मनिर्भर होने के नारे लग रहे हैं और तुम्हें दूसरों के पांव पर नाक रगड़ने की सूझी है . हम स्वयं सक्षम हैं . शहद का स्टाक भरा पड़ा है . उसका ही उपयोग क्यों न करें ?''
शहद आया. शरबत बनी . उन्होंने इतनी पी कि गर्म दिमाग पटरी पर आ गया . दूसरी पाली प्रांरभ हुई . बहस चली जिसमें वे दो दल में विभक्त हो गये . कबड्डी खेल का दृष्य उपस्थित हो गया था . कभी एक दल विजयी होता तो कभी दूसरा दल . तू - तू से लेकर पटका - पटकी हुई तब कहीं परिणाम का जन्म हुआ . सुझाव चार प्रकार के थे -
(1) जंगलों के चारों ओर खाई खोद दी जाय .
(2) हमें सरकार ने बंदूक दी है उनका उपयोग न हुआ तो जंग लग जायेगा इसलिए जिन्हें पाये उन्हें धूंकें . इससे लोग डरकर जंगल में पैर रखने से घबरायेंगे तो चोरी होने का सवाल कहां ?
(3) जंगल के पास के सभी गांवों को जंगल में बदल दिया जाये. ग्रामीण नहीं रहेंगे तो चोरी कौन करेगा ?(ग्रामीणों के सिवा दूसरा कोई चोर होता ही नहीं )
(4) जंगल के चारों ओर पहरा दें । हम रहेंगे तो कोई फटकेगा भी नहीं.
मतदान हुआ तो चौथे प्रस्ताव को विजय श्री मिली . बैठक ने काफी समय ले लिया था तो भूख लगना स्वाभाविक था . एक ने कहा - '' दाल भात हमेंशा खाते हैं . कोई स्पेशल आइटम हो तो मजा आ जाये .''
दूसरे ने कहा - '' मुर्गा और डिप्लोमेट चलेगा ?''
तीसरे ने कैची चलायी - '' कदापि नहीं,हम कुक्कुट पालन और आबकारी विभाग के थोड़े हैं. हम हैं वन विभाग के.विभागीय वस्तुएं वापरेंगे. खरगोश,हिरण हैण्डब्राण्ड हो तभी ग्रहण करेंगे.अपने विभाग का कल्याण भी तो करना है.''
बात सच थी.शिक्षा विभाग वाले चाकमिह्वी, चाकमिट्टी , टाटपट्टी और गणवेश खा ले तो शिक्षा में क्रांति आयेगी। कृषि विभाग के लोग किसानों की जमीनें खा लें तो अन्न उत्पादन अधिक होगा। कहने की देर थी, भोजन की तुरंत व्यवस्था हुई। वे भूखे भेड़िये तो थे, डंटकर पीयें और खाये। खाते - पीते तो उनके विभाग की नाक कट जाती। '' वन विभाग'' - '' जिन्दाबाद, इसके कारण जग आबाद '' के गगनभेदी नारे लगे और बैठक की पूर्णाहुति हो गई।
इस बैठक के समाचार को दैनिक पत्रों ने प्रमुखता से छापा . एक ने कहा था - '' वन विभाग सर्तक. अब से जंगलों की चोरियां बंद. पयार्वरण को कोई खतरा नहीं. वन विभाग को इस पत्र की ओर से अनेक शुभकामनाएं....।''
दूसरे अखबार को वन विभाग से विज्ञापन नहीं मिलते थे . उसकी टिप्पणी थी - '' पहले वाला अखबार पैसे में बिक चुका है. सत्यवान यह है कि वन विभाग के लोग खुद चोर हैं. अपने कुकर्म पर बुर्का डालने के लिए लीपापोती कर रहे हैं . इसकी जांच के लिए आयोग बैठनी चाहिए......।''
कुत्ते भौंकते है मगर हाथी बाजार जाने से क्यों चूके . इतना कह कर वन विभाग के लोग जुट गये जंगलों की रक्षा करने . रक्षकों के पास गोंद की कमी थी ही नहीं, वे चिपक गये वृक्षों से . उनके आंदोलन के सामने चिपको आंदोलन धराशाही हो गया . रक्षकों के जबरदस्त घेराबन्दी के कारण उन्चासों पवन जोर मारते थक गये मगर अंदर धंस नहीं पाये . सूर्य का प्रकाश जंगल के बाहर नाक रगड़ता रहा . रक्षकों को भूख लगती तो कंद मूल का भक्षण कर लेते . झरने का पानी पी लेते . कपड़े फट गये तो वृक्ष का छाल पहन लिया मगर कर्तव्य पथ से फिसले नहीं.
वृक्षों का कटना बंद था . उनमें होड़ लग गई कि अंतरिक्ष को पहले कौन चूमें ? सुनने में यहां तक आया कि कई वृक्ष चन्द्रमा तक धमक गये हैं . उन्होंने पयार्वरण बदल दिया है .अब चन्द्रमा में बस्ती बसेगी . रक्षक अपनी सफलता पर प्रसन्न् थे . एक दिन वे समूह गान कर रहे थे -
'' बाजे धिक धीना हो
हैं सागौन हमारे दादा
साजा सग्गे भाई,
तेंदू मामा, चार हैं साढ़ू
सरई हुई भौजाई.
बाजे धिक धीना हो
शेर हमारे फूफा लगते
चीता प्यारे काका,
जिसकी इच्छा प्राण गंवाने
वह आ डाले डाका
बाजे धिक धीना हो .....।''
इधर उनका गीत खत्म हुआ उधर हनुमान ने जंगल में पैर रखा . रक्षक घोड़े बेंच कर खरार्टे नहीं ले रहे थे, जो असावधान रहते . उन्होंने ऐसा चक्रव्यूह बनाया कि हनुमान पकड़ में आ गये . रक्षकों ने कहा - '' हमने आपको जंगल में मंगल मनाने के लिए नेवता नहीं दिया था जो महुआ फल बन टपक पड़े. आपको ज्ञात होना चाहिए - यहां घुसने के लिए हवा की हवा हो गई है . दर्शन करने की इच्छा फड़कती तो हम ही आपके पास दौड़ आते . यहां पधारे तो क्यों ?''
हनुमान ने कहा- '' तुम्हारा काम है जंगल की देखभाल करना . मेरा काम है जड़ी - बूटी उखाड़ना. तुम्हें अपना काम करना चाहिए मगर दूसरे के काम में लाल झंडी क्यों मार रहे हो ?''
वे जड़ी - बूटियां उखाड़ने लगे . रक्षकों ने टोंका - '' देखिए, आपने किसी भी वन्य वस्तु पर हाथ लगायी कि आप पर जुर्माना ठोंक देंगे . हम शासकीय नौकर है. आज्ञा का पालन करना ही पड़ेगा .''
हनुमान ने कहा - '' मैं भी तो आज्ञा का पालन कर रहा हूं . लक्ष्मण बेहोश पड़े हैं. उन्हें दवाई की सख्त आवश्यकता है . स्वयं राम ने मुझे भेजा है - दवाई लाने . यदि रोकोगे तो मेरा क्या , हाथ हिलाते चला जाता हूूं . प्रभु के पास तुम्हारे करतूत खोल दूंगा .''
अब तो रक्षकों के होश हुए गुम . उन्होंने राम की वंदना की - '' वाह भगवन, एक ओर तो हमें जंगलों की रखवाली करने की आज्ञा दी . दूसरी ओर से हनुमान को भेज दिया कि पहाड़ उखाड़ लाओ.अब हम और हनुमान लड़ेंगे. भक्तों को आपस में बैर कराना , मार काट करना कोई आपसे सीखे......। लोग सोच रहे होंगे कि राम निष्कासित है . उनके हाथ में सत्ता नहीं है मगर जूते शासन चला रहे हैं , इसे कोई नहीं जानता. रक्षकों ने हनुमान से कहा - अब केहि काज बिलंब - आपको जो चाहिए ले जाइए. पहले पता होता कि राम अपने भाई की भलाई करना चाहते हैं तो हम बाधा क्यों बनते ! आखिर हमें भी तो उनके बताये मार्ग पर चलना है कि अपने परिवार - संबंधियों का ही उपकार करना है.....।
हनुमान वहां प्राकृतिक सौन्दर्य का अवलोकन करने थोड़े ही गये थे . वे अपने समय की बलि देते . उन्होंने पूरा पहाड़ उखाड़ा और वहां से चलते बने . हनुमान रवाना हुए कि वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी को इस घपला कांड की भनक लग गई . उन्होंने तत्काल कारण बताओं नोटिस दी - तुम लोगों की उपस्िथति में जंगल राख हुआ. इस दुष्कर्म में तुम लोगों के हाथ का कमाल है . इसलिए क्यों न तुम लोगों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाय ! यदि अपने को दूध का धुला प्रमाणित करना है तो सात दिनों के अंदर स्ष्पटीकरण भेजो वरना निलंबित करने का कागज तुम्हें त्रिशंकु बना देगा.....।
रक्षकों के ऊपर तो गाज गिर गया. वे स्ष्पटीकरण देते तो क्या ,वहां हालात प्रत्यक्षमं किं प्रमाणम् थी. वे निलम्िबत कर दिये गये . उनके बिना जंगलों की रक्षा नहीं हो पा रही थी इसलिए वरिष्ठ अधिकारियों ने नई नियुक्तियां कर दी . दरअसल अधिकारी महोदय समाजवाद के पक्के समर्थक थे . वे अपनी जाति अपने समाज के उत्थान के लिए शहीद होने सदा तैयार रहते थे . नवनियुक्तियों में उनके साले, भतीजे और पुत्र ही थे.
इधर निलम्िबत रक्षक आकाश से गिर कर खजूर में अटक गये थे . एक ने कहा - '' हम तो धोबी का गधा हो गये. न स्वतंत्र धंधा कर सकते न पूरा वेतन ही मिल रहा. अब खायें क्या ?''
दूसरे ने कहा - '' खेत में चले, काम करने ?''
तीसरे ने टोका - '' कैसी बातें करते हो, हम कृषि विभाग से संबंधित थोड़े ही है जो कीचड़ मे प्राण दें. रेल विभाग के लोग रिजर्वेशन दिलाने का धंधा करते हैं. बेटिकट घूमते हैं तो हम भी दूसरों का पत्तल क्यों चांटे ! क्यों न अपने जंगल से ही दाल चटनी निकाले ?''
और वे जूट गये अपने कार्य में. वे जंगलों से बांस - बल्लियां चुराते . उन्हें बेचते और जीविका चलाते . एक दिन वे रंगें हाथ पकड़े गये . पकड़ने वालों ने दण्िडत करने का प्रयास किया तो इन लोगों ने कहा - '' प्यारे, हमने ईमानदारी दिखाई तो उसका पाप भोग रहे हैं . तुम भी किसी दिन नौकरी से लात खाओगे तो हमारी जैसी दुगर्ति है , तुम्हारी भी हो जायेगी. इसलिए चोर - चोर मौसेरे भाई के सिद्धांत का पालन करो . लकड़ियां बेचो, पूंजी जोड़ोंं भविष्य में काम आयेगी.''
पकड़ने वालों ने उन्हें अपने कब्जे से मुक्ति दे दी.साथ यह भी कहा कि यदि दमदार ठेकेदार का पता मालूम हो तो हमें बताना . उसे दो-चार ट्रक सागौन लकड़ियां समर्पित करेंगे .''
इसी प्रकार निलम्िबत लोगों के दिन गुजरने लगे.वे गुजर जाते तो वन विभाग को पुण्य तिथि मनाने का मौका मिल जाता . वह अनिच्छा से दुख प्रकट करता कि - '' हमारे कर्मचारियों ने मृत्यु ने हमारी अनुमति के बिना अपने पास बुला लिया.जबकि हमें इनकी सेवा की अत्यंत आवश्यकता थी '' श्रद्धांजलि देने के साथ घोषणा करते कि इनके परिजनों को बीस - बीस हजार रूपए दिये जायेंगे....।
एक दिन निलम्िबत लोगों के लिए बड़ा शुभ दिन आया . उन्होंने दैनिक पत्र में पढ़ा कि राम सत्तासीन हो गए हैं . देश का बागडोर उनके कर कमलों में आ गया है . हनुमान उनका पी.ए. हैं.अब क्या था वे हनुमान के पास धाये हनुमान चालीसा का पाठ करते - जय जय हनुमान गुंसाई, कृपा करहुं गुरूदेव की नाई...........। हनुमान ने उन्हें देखा तो पूछा - '' तुम कौन हो ...?''
निलम्िबत रक्षकों ने कहा - '' आपकी ही कृपा ने हमें बीच मंझधार में झोंक दिया है. आपकी याददाश्त इतनी तेज कि हमें पहचानने से भी इंकार कर गये.''
हनुमान के क्लर्क ने कहा - '' हमारे गुरू ऐसे ही हैं . उन्हें अपनी शक्ति की भी याद नहीं रहती . कोई उन्हें याद दिला दे तो भले ही वे तनकर खड़े हो जायेगे.अभी ही पत्रावली उनके हाथ पर थी पर मुझ पर बौछार हो रहे थे कि पत्रावली ढ़ूंढ़कर लाओ वरना इंक्रीमेट रोक दूंगा ...।''
हनुमान को सारी बातें याद आ गयी थी.उन्होंने निलम्िबत लोगों को ले जाकर राम के पदकमल पर बिछा दिया.कहा - '' सरकार, आपके शासन मे राष्ट्रभक्तों की कोई कीमत नहीं . इनके कारण ही लक्ष्मण के प्राण बचे इसके बदले इन्हें निलम्बन का पुरस्कार मिला.ये आये हैं शरण तिहारी, इनकी पुकार सुन लीजिए .''
राम ने पुकार सुनी.वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाया.डांटा - '' तू दूसरा रावण कब से पैदा हो गया . मेरे भक्तों पर ही अत्याचार कर रहा.तुमने इन्हें निलम्बित क्यों किया....... साथ ही तुम पर आरोप है कि अपने सगे संबंधियों को नौकरी दी. भाई - भतीजावाद को बढ़ावा देने की हिम्मत कैसे हुई ?''
अधिकारी ने कहा - ''आपके कर्म ने. आपने भरत को कृषि एवं खाद्य मंत्री, लक्ष्मण को गृहमंत्री तथा शत्रुहन को सुरक्षा मंत्री का पद दिया है तो मैंने भी अपने रिश्तेदारों को नौकरी देकर आपके पदकमल का अनुशरण किया है.''
राम मुसकाये.कहा - '' ठीक है मगर इन निलम्िबत रक्षकों को पुर्ननियुत कर दो. इन बेचारों ने हमारे लिए बड़े कष्ट झेलें हैं ''
अधिकारी ने कहा - ''आप आज्ञा दे तो अपने पद के सिवा सभी कुछ इन्हें सौंप दूं. मुझे क्या, कागज पर हस्ताक्षर ही तो मारना है.''
और राम कृपा से निलम्िबत रक्षक पुन: नौकरी में आ गये.वे राम के भजन गाते वापस चले :-
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भव भय दारूणम् ।
नवकंज लोचन कंजमुख कर कंज पद कंजारूणम् ।।
पता
भण्डारपुर ( करेला )
पोष्ट - ढारा, व्हाया - डोंगरगढ़
जिला - राजनांदगांव
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