छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

रविवार, 28 अगस्त 2016

यथार्थ के चिंतक

नूतन प्रसाद

          वेद व्यास महाभारत की रचना कर चुके थे। वे मानसिक थकान मिटाने सत्संग कर रहें थे। इसी बीच उन्होंने सुना कि राम कथा हो रही है। श्रवण करके आत्मसात करने के लायक है। वे गये। सम्पूर्ण कथा सुनी- उनका मन आनंद से भर गया। शांति छा गयी। लेकिन अपनी रचना के सम्बन्ध में विचार किया तो चिंतित हो उठे। वे महाभारत में त्रुटियों का भण्डार देखने लगे। उन्होंने निश्चय किया कि वर्णित घटनाओं को बदल दूंगा। अपने विचारों को कार्यों में बदलने शीघ्रता से चले। उनके पीछे साहित्य समीक्षक, लेखक पत्रकार, बुद्धिजीवी, राजनीतिज्ञ और नाटककार दौड़े। बोले- गुरूदेव क्या बात है- आप चिंतायुक्त हैं। शीघ्रता से जा रहें है ?''
व्यास बोले- मैंने राम कथा सुनी। उसमें भातृप्रेम है। स्त्री का सम्मान है, गुरू की महिमा है पर मेरे महाभारत में मारकाट, युद्ध, शत्रुता, स्त्री पर अत्याचार, षडयंत्र,द्यूत है।''
          रामायण में राम को वनवास हुआ तो छोटे भाई लक्ष्मण उनकी सहायता करने साथ गये। भरत उन्होंने मनाने गये। सीता को मां का दर्जा प्राप्त है। हनुमान ने अपना पूरा कर्तव्य निभाया। विश्वामित्र की बात मानकर राजा दशरथ ने अपने प्यारे पुत्रों को सौंप दिया।
          लेकिन मेरे महाभारत में बीच सभा में द्रौपदी का चीरहरण दिखाया। कौरव - पाण्डव भाई हैं पर सत्ता और धन के लिये युद्ध कराया। कुन्ती मां के द्वारा पुत्र कर्ण का त्याग हुआ। धर्मराज युधिष्ठिर को गलत जानकारी देने के कारण गुरू द्रोणाचार्य की हत्या हुई। वीर अर्जुन ने निहत्थे कर्ण पर प्रहार किया..... । अब मैं किसी भी स्थिति में महाभारत को यथावत नहीं रखूंगा।
          समीक्षक ने कहा- हां, यह यथार्थवादी चिंतक हैं। समाज के वास्तविक घटनाओं के ज्ञाता हैं। यश पद धन के लिये भाई भी अपने भाई का गला काटता है। मित्र अपने परम मित्र को धोखा देता है।
          राजनीतिक ने कहा- हां, यह सत्य है कि हम दूसरों को से युद्ध करते हैं। अपने विरोधी को हर क्षेत्र में बर्बाद करने की कोशिश करते हैं।
          व्यास शांत हुए। पूछा -  इसका अर्थ मेरी रचना प्रभावकारी है। क्या सर्व समाज इसे स्वीकार करेगा ?
         नाटककार- जी हां। अध्यात्म का प्रचारक भौतिक सुविधाओं की चाहत रखता है। विश्वासपात्र धोखा देता है.... । आप अपने ग्रंथ की महानता पर शंका न करें .... मर्यादित हो। सैद्धान्तिक हो मगर इसके यथार्थ तर्क को स्वीकारेगा। यह अजेय है।
         व्यास संतुष्ट हुए। उन्होंने परिवर्तन करने का विचार त्याग दिया। वास्तव में महाभारत यथार्थवादी ग्रंथ के रूप में सबको मान्य है।

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