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शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

रावण की भविष्‍यवाणी

                           रावण की भविष्यवाणी
रावण रणभूमि में घायल अवस्था में पड़ा था। वह दर्द से कराह रहा था। इसी बीच विभीषण आया। उसेन कहा- भैया, मैंने आपको बारम्बार समझाया कि राम से शत्रुता मत लो। लेकिन आपने मेरी सलाह नहीं मानी। उल्टा सीता का हरण कर ले आये। नारी का अपमान करने के कारण आपको यह दुर्दिन देख्रना पड़ा।
रावण ने कहा- तुम मुझ पर दोषारोपण कर रहे हो- मगर भूल गये कि हमारा राक्षस समाज जागरूक और स्वतंत्र विचारों वाला है।़ हमारी मां केकसी ने आर्यकुल के ऋषि पुलत्स्य के पुत्र वैवश्रवा मुनि से ब्याह रचाया। मेरी बहन- तुम्हारी बहन सुर्पणखा उच्च शिक्षित और राजपरिवार की सदस्य है। वह सांवली है पर आकर्षक और खूबाूरत है। वह योग्य वर की तलाश में थी। उसने लक्ष्मण के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। मगर लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी। यह घोर अन्याय है। उस वक्त राम वहां उपस्थित थे। पर लक्ष्मण को गलत कार्य करने से नहीं रोका। नारी का अपमान मैंने नहीं वरन सर्वप्रथम राम ने किया। मैंने सिर्फ प्रतिशोध लिया है।
विभीषण ने पुन: राम का पक्ष लिया। कहा- मेरा अभी भी यह मत है कि आपको राम से क्षमा मांग कर समझौता कर लेना था। लेकिन आपने युद्ध किया। अंतत: आपको हार का मुख देखना पड़ा।
रावण को आह मिश्रित हंसी आ गई। कहा- भाई, तुम्हारे इस शब्द ने मेरे शरीर के दर्द को बढ़ा दिया। मेरी प्यारी लंका सोने की नगरी है। यहां के लोग सुखी और सम्पन्न हैं। सैन्य व्यवस्था सुदृढ़ है। मुझे किसी भी स्थिति में राम ने पराजित नहीं किया। उसके जिम्मेदार तुम हो। लंका की बर्बादी और राक्षस कुल का नाश होने का कारण तुम हो सिर्फ तुम हो।
विभीषण आहत हुआ। कहा- मैंने कौन सा अपराध किया। मेरा दोष तो बताओ?
रावण ने स्पष्ट किया- तुमने राम के राजदूत हनुमान को लंका की अर्थव्यवस्था, सैन्य शक्ति, संवेदनशील स्थल याने हर गोपनीय तथ्य को बता दिया। तुमसे श्रेष्ठ देशभक्ति लंकिनी में थी। वह नारी होकर महाबली हनुमान से युद्ध करते हुए देश की सीमा पर अपने प्राणों की बलि दी। साहित्य में तुम चरित्रवान पूजनीय कहलाओगे पर इतिहास में घर का भेदी लंका छेदी याने गद्दार कहाओगे।
विभीषण चौंक गया। बोला- मैं तो सीधा सरल और सज्जन हूं। मुझे लोग धर्मात्मा कहते है।
रावण ने कहा- तुम्हारी समाज में प्रतिष्ठा है। शासन के हर महत्वपूर्ण भेद को जानते हो ़ ़ ़ ़भविष्य में ऐसे ही राजनैतिक पहुंच वाले, आर्थिक सम्पन्न, भद्र और भव्य व्यक्तित्व के धनी लोग ही देश के साथ विश्वासघात करेंगे।
रावण की मृत्यु हो गई। लेकिन उसकी भविष्यवाणी अक्षरश: सत्य प्रमाणित हुई ़ ़ ़ ़
चित्तौड़गढ़ एक सम्पन्न और सुदृढ़ राज्य था। उसके शासक महाराणा प्रताप परम वीर और प्रजापालक थे। बाह्य शत्रु उस राज्य पर आक्रमण करने से घबराते थे। लेकिन उनके लघु भ्राता शक्ति सिंह से पारिवारिक विवाद हो गया। वह नाराज होकर अकबर बादशाह से जा मिला। कहा- आप चित्तौड़ पर आक्रमण कीजिये। किसी भी स्थिति में महाराणा को हराना है। मुझे उनसे शत्रुता का बदला लेना है।
अकबर चिंतित हुए। कहा- चित्तौड़ की जनता स्वाभिमानी और देशभक्त है। महाराणा के आह्वान पर मर मिटने तैयार हैं, मैं कैसे विजय पा लूंगा।
शक्ति सिंह ने उकसाया। कहा- मैं शासन का हर भेद जानता हूं। सैन्य व्यवस्था, अस्त्र शस्त्रों के भण्डारण का स्थान, गोपनीय जानकारियाँ मुझे ज्ञात है।
शक्ति सिंह ने अकबर को सभी दस्तावेज सौंप दिये। फिर क्या था- हल्दी घाटी का युद्ध प्रारंभ हो गया। महादानी भाभाशाह ने अपनी समस्त सम्पत्ति देश को दान कर दिया। चित्तौड़ की सेना ने पूरी ताकत से युद्ध किया। लेकिन चित्तौड़ के प्रतिष्ठित नागरिक एवं शासन के आंतरिक व्यवस्थाओं के ज्ञाता शक्तिसिंह के विश्वासघात के कारण महाराणा प्रताप जैसे अजेय योद्धा को पराजित होना पड़ा।
सिराजुद्दौला बंगाल के नवाब थे। उनकी सेनापति मीरजाफर था। उस वक्त अंग्रजों का बंगाल में आगमन हो चुका था। लार्ड क्लाइव गर्वनर थे। क्लाइव और मीरजाफर में गुप्त संधि हुई। क्लाइव ने कहा- अगर युद्ध में हमारी मदद करोगे तो तुम्हें बंगाल का नवाब बना दूंगा। प्लासी का युद्ध शुरू हुआ। नवाब और अंग्रजी सैनिक आमने सामने है। युद्ध होना चाहिये। एक- दूसरे पर प्रहार करना चाहिये। लेकिन यह क्या- मीरजाफर ने अपने सैनिकों को मैदान छोड़कर भागने का इशारा कर दिया। नवाब के सैनिक भाग खड़े  हुए। सिराजुद्दौला बिना युद्ध किये पराजित हो गये। बंगाल पर अंग्रजों का अधिकार हो गया।
बहादुरशाह जफर के किले में हजारों सैनिक थे। वे बादशाह की सुरक्षा में तैनात थे। उधर अंग्रेज दिल्ली पर कब्जा जमाना चाहते थे। उनका सेनापति हडसन था। उसने बादशाह के सैनिकों को लालच दिया कि अगर हमारे खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं करोगे तो तुम्हें दुगना वेतन दिया जायेगा। साथ ही पदोन्नति देकर सम्मानित किया जायेगा।
हडसन अपने सैनिकों के साथ किले में दाखिल हुआ। बादशाह को गिरफ्तार किया। उनके सामने शहजादों को गोलियों से भूना। बादशाह के सिपाही ये पूरा दृष्य देख रहे थे। लेकिन उन्होंने अंग्रजों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। बंदूकें रखे पत्थर की मूर्ति बने रहें। अंतत: देश का शासन अंग्रजों के हाथों चला गया।
आज भी भारत पर बाह्य आक्रमण हो रहा है। समान्य जन की हत्याएं हो रही है इसमें राष्ट्र विरोधी तत्वों का हाथ है। वे सम्पन्न हैं। शिक्षित और समर्थ है। राजनैतिक पहुंच है। कवि प्रदीप ने पहले ही चेतावनी दी है-
सारी दुनिया जल जाती है मुट्ठी भर अंगारों से
सम्हल के रहना अपने घर में छुपे हुए गद्दारों से।

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