छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

रविवार, 28 अगस्त 2016

लंकिनी की वीरता

              नूतन प्रसाद

            राम लंका विजय के पश्चात अयोध्या लौटे। उनके साथ हनुमान भी आये। वे छाती ताने नगर भ्रमण पर निकले। लोग उनकी प्रशंसा करने लगे - '' आप महाबली हैे। कर्तव्यनिष्ठ हैं। आपने सीता का पता लगाया। लंका को तहस नहस किया। मेघनाथ के वार से लक्ष्मण मूर्छित हुए। आपने औषधि की व्यवस्था की। डा. सुषेण को लाकर उनका उपचार कराया।''
           इसी बीच एक व्यक्ति की नजर हनुमान के हाथ की ओर गयी। वह चीख पड़ा - '' यह क्या महावीर, आपका हाथ घायल सा दिखता है। कहां चोट लगी - युद्ध में किसी शत्रु  ने वार तो नहीं कर दिया ?''
            हनुमान ने स्वीकारा। कहा - '' हां भाई, यह सत्य है कि एक वीर नारी ने मुझ पर हमला किया। आज मैं शत्रु की प्रशंसा करना चाहता हूं - लंका की स्त्रियां शिक्षित हैं। देशभक्त हैं। कर्तव्य के प्रति सजग हैं। त्रिजटा, मां सीता की सुरक्षा में तैनात थी। उसके कारण सीता को कोई कष्ट नहीं हुआ। ऊपर से दुखी हृदय को शीतलता प्रदान करती थी .... । उधर लंकिनी अपने देश की सुरक्षा के लिये सीमा पर तैनात थी। उसने मुझसे भयंकर युद्ध किया। इसी युद्ध में मेरा हाथ घायल हुआ। यद्यपि मेरी विजय हुई मगर अपनी मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राणों की बलि दी। उसकी वीरता को नमन है। हमारे अयोध्या में नारियों का सम्मान है मगर राजकीय सेवा में उनकी उपस्थिति नहीं है।
           लोगों को वास्तविक तथ्य का ज्ञान हुआ। कहा - '' इसका अर्थ यह हुआ कि स्त्रियों को शिक्षित करना होगा। उन्हें देशभक्ति का पाठ पढ़ाना होगा।''
          हनुमान ने कहा - '' अवश्य। इस विषय पर राम जी से चर्चा करेंगे कि स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा हो। पुरूषों के बराबर हर पद पर आसीन हों।''
          वे राम के पास चर्चा करने निकल पड़े।

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