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शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

नई दिशा

                           नई दिशा
   कबीर को साहेब कहा गया है। साहेब याने सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाला। कड़े  शब्द से लोगों की भलाई करने वाला। कबीर जहां भी अन्याय और शोषण देखते उसका विरोध करते। धार्मिक पाखण्डवाद को उखाड़  फेकनें कृत संकल्प थे।
पण्डित जी विद्वान शास्त्रों के ज्ञाता थे। लोगों को धर्म की शिक्षा देते पर स्वयं को श्रेष्ठ और दूसरों को तुच्छ समझते। इस क्रूर व्यवहार पर कबीर ने चेताया-
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पण्डित भया न कोय
ढ़ाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पण्डित होय।
मुल्ला को कहा कि
कांकर पाथर जोरी के मस्जिद लई चुनाय
ता पर मुल्ला बांग दे बहरा हुआ खुदाय।
कबीर मंदिर के पास से निकले। वहां लोग सिर मुड़वा रहे थे। कबीर ने पूछा- भाई, तुम्हारे सिर में बाल थे तो सुन्दर दिखते थे। मगर मंदिर आकर सिर मुड़वा रहे हो। क्या कारण है?
भक्त ने कहा- आप खटखटा चलाकर कपड़े  बिनते है। धर्म की बातें क्या जाने- मुड़वाने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। तन- मन पवित्र हो जााता है। ईश्वर प्रसन्न होते हैं। तब कबीर ने हड़काया-
मूड़ मुड़ाय हरि मिले सब कोई लेय मुड़ाय
बार बार के मूड़ते भेड़  न बैकुण्ड जाय।
उसी प्रकार कबीर लोगों को वास्तविक संसार से परिचित करते। उनकी जनहितकारी बातों को सुनने लोगों की भीड़  लगती। वे कबीर की प्रशंसा करते। पर पण्डित, मौलवी, धर्माचार्य सख्त नाराज थे। उनका सम्मान घट रहा था। वे कबीर को शारआर्थ में हराने उन्हें ढूंढने निकल पड़े। पर कबीर कहीं भी नहीं दिखे। पण्डित जी बोले- हम साहेब को कई घंटे से ढूंढ रहें है। पर उनका पता नहीं चल रहा।
मुल्ला ने कहा- अब कैसे सामने आयेंगे। डर के मारे किसी कोने में छुप गये होंगे।
वे आगे बढ़े। एक राहगीर से पूछा- तुमने कबीर को देखा?
राहगीर- हां देखा है- उन्हें बाजार की ओर जाते देखा है।
धर्माचार्य को विश्वास नहीं हुआ। डांटा- बाजार में लोगों की भीड़  लगी रहती है। वहां कबीरवाणी को कौन सुनेगा। वे हमसे विद्वता में टक्कर लेने के बदले अंधेरे में भटक रहे होंगे।़
राहगीर- साहेब तो अज्ञानता के अंधेरे में डूबे लोगों को प्रकाश दिखाते है। रूढ़िवाद अंधविश्वास को दूर करके यथार्थ जगत को जानने की सीख देते हैं ़ ़ ़ ़आप बाजार जाकर स्वयं देख लें। वहां कबीर मिल जायेंगे।
विद्वदजन बाजार पहुंचे। वहां कबीर उपस्थित थे। लोग उन्हें घेर कर खड़े थे। उनकी वाणी को ध्यानमग्न होकर सुन रहे थे। पण्डित जी ने ललकारा- आप विद्वानों की भर्त्सना करते है। अपने को श्रेष्ठ समझते हैं।़
मुल्ला ने रोष प्रकट किया। कहा- आप मनुष्यों भेद कराते हैं- श्रमिकों का पक्ष लेते हैं। उन्हें मिहनतकश कहकर उनका सम्मान करते है और हमें परजीवी साबित करके हमारा अपमान करते हैं। लोग हमें धार्मिक शोषक कहते हैं।
कबीर ने विद्वानों का सत्कार किया। नम्र वाणी में कहा- मैं किसी को श्रेष्ठ नहीं समझता और न किसी को तुच्छ। मेरे लिये सभी समान हैं। सब के हित की बात करता हूं-
कबिरा खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर।
विरोधी लज्जित हुए। कहा- वास्तव में आप साहेब हैं। आपका हृदय निर्मल है। हमें आपसे ईर्ष्या थी। पर आपके सदविचारों ने हमारे कलुषित विचारों को हटा दिया।
कबीर प्रसन्न हुए। बोले- यह शुभ हुआ। आपके मन में भ्रांति थी- मुझे शत्रु समझते थे। साक्षात्कार हुआ तो दुभविनाएं खत्म हो गई। अब हम सब मिलकर समाज को नई दिशा देंगे।

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