छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

रविवार, 25 सितंबर 2016

वह बेचारा

        वह सर्वशक्तिमान है। ईश्वर है। भगवान है। पर वह बेचारा है।
        समुद्र मंथन जारी था। देव और दानव युद्ध करने तैयार थे। पर मंदराचल पर्वत समुद्र के तल में डूबने लगा। तब दोनों पक्षों ने ईश्वर को पुकारा- '' प्रभु, तुम हमारी सहायता करो- मंदराचल को डूबने से बचाओ।''
       ईश्वर विवश हो गया- उसने कच्छप बनकर मंदराचल को अपनी पीठ पर उठाया। तब जाकर समुद्र मंथन का कार्यक्रम सफल हुआ।
        उधर हिरण्यकश्यप ने स्वयं को सर्वशक्तिमान घोषित कर दिया। प्रहलाद ने कहा - '' पिता जी, आप सम्पन्न हैं। राजा हैं। पर विश्व का संचालक नहीं हैं। जगत का पालनहार सिर्फ ईश्वर है।''
       हिरण्यकश्यप ने खंभे को दिखाकर कहा - '' तुम जिस ईश्वर की वंदना करते हो- उसे इस खंभे से निकालकर दिखाओ।''
       प्रहलाद ने प्रार्थना की - '' हे प्रभु, आप इस खंभे से प्रकट होइये।''
      खंभे को फाड़कर नृसिंह भगवान प्रकट हुए। प्रहलाद अचम्भे में पड़ गया। कहा - '' यह क्या प्रभु, आपका धड़ मनुष्य का है औेर सिर सिंह का। मुझे तो इस दृश्य की कल्पना ही नहीं थी।''
      ईश्वर ने कहा - '' हिरण्यकश्यप को वरदान मिला था कि वह दिन में नहीं मरेगा न रात में। ना बाहर में ना भीतर में। उसे मनुष्य नहीं मार सकता ना पशु। तब मैं क्या करता -  नृसिंह रूप में आकर उसे प्राण दण्ड देना पड़ा। तुम्हारी स्तुति के अनुसार मुझे रूप बदलना पड़ा है। तुम मुझे सर्वशक्तिमान- विश्व का संचालक कहते हो पर वास्तव में मैं अपनी इच्छानुसार किसी भी कार्य का संचालन नहीं कर सकता। कष्ट में फंसे प्राणी के आर्तस्वर के अनुसार उसे उबारने अपना रूप बदलता हूं।

भण्‍डारपुर ( करेला )

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