नूतन प्रसाद
हम जिन शब्दों से सम्मनित होते हैं उन्हीं से अपमानित भी हो सकते है। शब्दों की क्रूरता के कारण चरित्रवान भी दुश्चरित्र और सज्जन भी दुर्जन बन जाता है।
रामायण कलीन भारत में राक्षस कुल के लोग महान योद्धा और आर्थिक सम्पन्न थे। लंका इसका प्रमाण है। लंका को सोने की नगरी कहा गया है। इसका अर्थ वह सम्पन्न नगरी थी। लोग खुशहाल थे। वहां सैन्य संख्या सुदृढ़ थी।
लेकिन राम रावण युद्ध में राक्षसों की हार हो गई। हार क्या हुई- सम्पूर्ण राक्षस समाज की निन्दा प्रारंभ हो गई। कवि और लेखकों ने अपने साहित्य में राक्षसों को क्रूर, हिंसक और कुरू प घोषित कर दिया। कोई अगर दुराचारी है तो उसके कर्म को राक्षसी कर्म कहा जाता है।
समाज में नेता अत्यंत सम्मानित शब्द है। सुभाषचन्द्र बोस को नेताजी कहकर उनका आदर करते है। नेता याने अगुवा या मुखिया। समाज को सही रास्ता दिखाने वाला। सच्चा पथ प्रदर्शक। लेकिन वहीं शब्द आजकल बदनाम हो गया है। कोई व्यक्ति दूसरों की सहायता करके अपनी उपलब्धि बताता है या ज्यादा बोलता है तो लोग उसे ताना मारते है कि तुम तो नेता हो गये। अपनी नेता गीरी बंद करो।
कुछ वर्ष पूर्व तक गुण्डा को समाज सुधारक कहा जाता था। युवकों में गुण्डा बनने की ललक होती थी। गुण्डा उसे कहते थे जो आततायी को दण्ड देकर समाज की सुरक्षा करते थे। लेकिन कालान्तर में वही गुण्डे कमजोर तबको को मारपीट कर सताने लगे तो गुण्डा शब्द आततायी की श्रेणी में आ गया।
कसाई का शाब्दिक अर्थ- मांस विक्रेता है। यह कर्म उसकी जीविका का साधन है। इसके द्वारा वह अपने परिवार का भरण पोषण करता है। यह कुछ भी अनुचित नहीं है ़ ़ ़़़़़ ़ लेकिन हम अपनी अल्पज्ञानी और दुर्भावना के कारण इसे क्रूर कर्म और हिेंसा मानते है कोई अगर निर्दयी हो गया तो उसे कहते कि वह पक्का कसाई हो गया। उसके पास दया नहीं है।
पण्डित यानी विद्वान साहित्य मर्मज्ञ। लेकिन लोग उसकी खिल्ली उड़ाते है। फिल्मों में उन्हें अबे पण्डित कहकर उनकी निन्दा की गई।
आजकल गुरू संत और प्रवचनकर्ता शाकाहार का पक्ष लेकर मांसाहार की बुराई करते है। मैंंने देखा कि गाय को माता मानो उसकी पूजा करो। मांस का सेवन बंद करो। यह राक्षसी भोजन है- यह कहने वाले कुछ ही वर्षो में पूज्य संत बन गये... । जबकि विज्ञान के अनुसार सभी मांसाहारी है। हमें भाजी खाना है। भाजी में कीड़ा है। उसे निकालकर फेंक दिया। कीड़ा मर गया। हमने भाजी खाकर अपने प्राण बचाये। इसके लिये कीड़ा के प्राण लिये। यह भी तो हिंसा हुई। यह सर्व विदित सिद्धांत है कि अपने प्राण बचाने के लिये दूसरे के प्राण लेने ही होंगे।
हमारा यह भ्रम है कि मांसाहारी धर्म नहीं जानते। ने सज्जन नहीं होते। वे हिंसक हैं पर यह धु्रव सत्य है कि वे धर्म रती है। उनमें दया, त्याग, ममत्व याने मानवीय गुण होते है। अर्थात् मांसाहार संबंधित कुविचारों को हटाया जाये।
मैंनक यह भी देखा कि प्रवचनकर्ता जोर शोर से ऊंची आवाज में नास्तिकों की आलोचना करते है। जबकि नास्तिकता यथार्थवादी सिद्धांतों पर आधारित है। उसे भौतिक वैज्ञानिक और ऐतिहासिक प्रमाण चाहिये। ग्रंथों में अमृत, कल्पवृक्ष, पारस पत्थर, क्षीरसागर की चर्चा है। अमृत याने मृत व्यक्ति को पुनर्जीवित करने वाली वस्तु या जीवित को अमरत्व प्रदान करने वाली। आस्तिक चूंकि आस्थावान है। वह अमृत की उपस्थिति को स्वीकार कर लेगा मगर नास्तिक को ज्ञात है कि वह काल्पनिक है। वस्तुत: वह आशा है। शोधकर्ताओं को सचेत करता है कि ऐसी वस्तुएं बनाओ कि प्राणी की औसत आयु में वृद्धि हो। वर्तमान में ग्रंथों का सही मूल्यांकनकर्ता और शोधार्थी नास्तिक हैं। अत: उनके प्रति दुर्भावाना को दूर कियर जाना चाहिये।
शेर दूसरे प्र्राणी को मारकर अपना ग्रास बनाता है। अत: हमने उसकी गणना हिंसक पशुओं में कर दी। मगर यह टिप्पणी सर्वथा अनुचित है। शेर के पास घास का भण्डार है। पर घास उसका भोजन नहीं है। वह शिकार को पकड़ने कड़ी मिहनत करता है। हांफता है। प्रकृति ने सिर्फ मांस भक्षण की अनुमति दी है। इसके उपरान्त उसके कर्म को हिंसा कहें तो ये शब्द क्रूरता की श्रेणी में आयेंगे।
जल्लाद शब्द का उच्चारण होते ही उसकी जलती हुई आंखें- खूंखार और डरावना चेहरा हमारे मानस पटल पर उभरता है। हम उसके सम्बन्ध में चिंतन करते ही डर से कांपने लगते हैं। क्रूर और हृदयहीन को जल्लाद कहकर, जल्लाद शब्द का दुरू पयोग करते है।
वास्तव में जल्लाद शांत, सौम्य और भले मानस होता है। उसका भी भरा पूरा परिवार होता है। न्यायालय जघन्य अपराधी को मृत्यु दण्ड की सजा देता है। इस कार्य को कुशलतापूर्वक संचालन के लिये जल्लाद को सौंपता है। जल्लाद न्यायालय का आदेश और अपना कर्तव्य पूरा करने वह फांसी के कार्यो को सजगता से पूर्ण करता है। इसके बदले उसे पारश्रमिक मिलता है। इसका सही अर्थ यह हुआ कि वह श्रमिक है। कर्तव्य निष्ठ है। समाज का हितैषी है। हमें उससे संबंधित घृणित विचारों को बदलना होगा।
यह अच्छी बात है कि किसानों के कार्यों को सराहना की गई है। फसलों में शत्रु कीटों का प्रकोप होता है। उन्हें बचाने कीटनाशक विघ का छिड़काव किया जाता है। कीड़ों को मारा गया। अत: यह हिंसा हुई। मगर प्राणियों को पालन पोषण करने वाले अनाज की रक्षा हुई। उसका उत्पादन बढ़ा। अत: यह कर्म सर्वथा उचित है।
इसी प्राण रक्षा कर्म के कारण किसान को अन्नदाता कहा गया है।
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