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मंगलवार, 18 अक्तूबर 2016

षड़यंत्र


                           नूतन प्रसाद

   जिज्ञासु याने घटनाओं के वास्तविक तथ्यों का पता लगाने वाला। संसार नींद में डूबा रहता है। तो वह जागृत अवस्था में चिंतन करता है।
   उधर राम ने लंका में विजय पा ली। वे अयोध्या लौट आये। शासन सम्भाल लिया। लोगों से कहा कि मैं आपकी मांगों के अनुरू प सुख सुविधायें देना चाहता हूं। मुझसे भूल हो जाये तो सुधार के लिये सलाह दे देना।
और वास्तव में राम अपनी प्रजा को संतुष्ट करने प्रयास करने लगे। इसी बीच एक घटना घट गई- राजा का मुख्य कर्तव्य जनता के वास्तविक जीवन शैली की सूक्ष्मता से देखभाल करें। राम नगर भ्रमण पर निकलें। उन्होने निर्मल को देखा। वह श्रमिक था। उसकी पत्नी अन्यत्र गई थी। थोड़ी देर बाद आई। निर्मल भड़क गया- तुम कहां गई थी- मैं प्रतीक्षा करते- करते थक गया। पत्नी ने कहा- कुछ समय ही तो बीते हैं बस इतने में हाहाकार कर रहे हो।
  विवाद करती हो- जाओ। चली जाओ। मैं राम नहीं हूं। सीता कई वर्षों तक अलग रही। मगर राम ने अपना लिया। तुम्हारे चरित्र पर मुझे संदेह है। मैं तुम्हें नहीं अपना सकता।
  राम ने सुना। गहरी पीड़ा हुई मगर कोई टिप्पणी नहीं की। वे अपने निवास आये। गर्भवती सीता का त्याग कर दिया। अयोध्या वासी दुखी हुए। कुछ पश्चात वे इस घटना को भूलकर अपने काम धंधे में लग गये।
  मगर जिज्ञासु के रातों की नींद उड़ गयी- जब सीता की अग्नि परीक्षा हो चुकी तब उस पर संदेह क्यों किया गया।़ इस छिपे रहस्य को जानने वह निर्मल से भेंट करना चाहता था।8
  जिज्ञासु ने राजमहल की ओर रू ख किया। उस वक्त राम दीवाल में टंगा सीता का चित्र देख रहे थे। उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी। स्पष्ट था- राम अत्यंत दुखी थे। जिज्ञासु प्रश्न करने इच्छुक था- निर्मल ने प्रत्यक्ष आरोप नहीं लगाया तब आपने सीता का त्याग क्यों किया?
  मगर शास्त्रों ने रोका- राजा महल में नहीं वह काजल की कोठरी में रहता है। शरीर इधर- उधर हटा कि दाग लग गया। राम अगर सीता का त्याग नहीं करते तो दोष थोपा जाता कि इसी प्रकरण पर दूसरों को दण्ड देते पर स्वयं पर लांछन लगा तो चुप्पी साध गये ़ ़ ़ ़। अब त्याग दिया तो आया कि निर्मल ने प्रत्यक्ष ंमे कुछ नहंीं कहा। साथ ही अग्नि परीक्षा हो चुकी है तो क्यों त्यागा? राजा पर सभी ओर से हमले होते हैं पर वह अपने दुख को सार्वजनिक स्थल प प्रकाशित नहीं कर सकता। वह अकेले में रोता है।
  जिज्ञासु ने राम से कोई चर्चा नहीं की। वह झोपड़ पट्टी की ओर चला। उसने एक व्यक्ति से निर्मल का पता पूछा। उस व्यक्ति ने एक भव्य मकान की ओर इशारा किया-देखो वह मकान निर्मल का है। पहले वह हमारे समान मिहनत मंजूरी करके पेट पालता था पर आजकल वह अन्न धन से सम्पन्न हो गया है।
  जिज्ञासु आश्चर्य में डूब गया। वह निर्मल के पास गया। पूछा-यद्यपि तुमने प्रत्यक्ष में राम की आलोचना नहीं की। अपनी पत्नी को डांटा। मगर अपने शब्दों में राम का नाम क्यों लिया।़ लगता है-तुम्हें किसी षड़यंत्रकारी ने उकसाया।़ तुम्हें आर्थिक मद्द देने का वादा किया होगा-यही बात है न?
  निर्मल टूट गया। मैं मिहनतकश इंसान हूं। कम आय होने के कारण अपने परिवार का खर्चा मुश्किल से निकाल पाता था। मैं हमेंशा अधिकरू पये कमाने की सोचता। तभी एक दिन मेरे पास प्रमुख अभियंता और ठेकेदार आये। उन्होंने कहा-लंका जाने के लिये हमने पुल बनवाया। दिन रात मिहनत की। हमें श्रेय मिलना था मगर राम ने गिलहरी जैसे छोटे कर्मचारी की प्रशंसा की। उसे पुरस्कार दिया। वह तुच्छ कर्मचारी अब हमारे सामने से छाती फुलाकर चलता है। इधर हम सिर गड़ाये रहते है। राम ने हमारा अपमान किया अत: उनकी भी हानि होनी चाहिये। तुम उनके हिल में गहरा सदमा पहुंचाओ इसके बदले तुम्हें आर्थिक मद्द देंगे।
  उन्होंने बलात् मेरे हाथ मेंरू पये पकड़ा दिये। मुझेरू पयों की आवश्यकता थी। मैंने उनकी बात मान ली। और राम को मानसिक वेदना पहुंचाने का काम कर डाला। जिज्ञासु ने पूछा-तुम निर्धन थे तब राम ने तुम्हारी सहायता नहीं की।़ तुम्हारी समस्या का निराकरण राम ने नहीं किया?
  निर्मल ने बताया। उन्होंने सदा मेरी मांगे पूरी की। उनके राज में सभी समान और सुखी हैं।
 राम राज बैठे त्रिलोका। हरसित भये गये सोका।
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज काहू नहि ब्यापा।
 ारम ने जन कल्याणकारी कर्मों ने विरोधियों को चिंता में डाल दिया- राम की सर्वत्र प्रशसा हो रही है। किसीकी शिकायत नहीं है। अब हमारी राजनीति का क्या होगा- हमें कोई पूछने वाला नहीं है ़ ़ ़ ़। तुम हमाीर मद्द कर राम की बुद्धि में तनाव भर दो ताकि वे अपना ही नुकसान कर डालें। हम तुम्हारी झोपड़ी को महल बना देंगे।
  राम एक आदर्श शासक है मगर धन प्राप्ति की व्याकुलता ने राम पर आक्षेप लगाने विवश कर दिया। मेरे शब्दों ने राम को आहत किया। उन्होंने अपनी सीता का त्याग कर दिया। यद्यपि मेरा कर्म निंदनीय है पर यश पद धन प्राप्ति के लिये हर गलत कार्य जायज है।
  इसी तरह उच्चासन पर बैठे समता सिद्धांत के शत्रुओं ने राम के विरू द्ध षड़यंत्र रचा। अंतत: राम को अनिच्छा से सीता का त्याग करना पड़ा।

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