छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

सोमवार, 2 जनवरी 2017

समय का फेर

     नूतन प्रसाद
    रावण चुनाव लड़ने तैयार था। वहां भाट, कवि, समर्थक, कार्यकर्ता, चाटुकार, ज्योतिषाचार्य उपस्थित थे। कवि ने कहा - '' आपके शासन में प्रजा सुखी है। यहां सम्पन्नता है अत: लंका को सोने की नगरी के नाम से प्रसिद्धी मिली। आपकी सर्वत्र प्रशंसा हो रही है अत: आपकी विजय निश्चित है।''
     रावण को मानो अभी ही विजय सी मिल गई। भाट ने कहा - '' आप जैसा पराक्रमी कोई नहीं । आपके आगे धरती कांपती है। बादल डर के मारे इधर - उधर भागते हैं - '' डगमगानि महि दिग्गज डोले।'' विपक्षी सामने आने से डरते हैं। आलोचक की बोलती बंद हो जाती है। पत्रकार - समस्त अखबारों के मुख पृष्ठ पर आपका चित्र और गुणगान करते है। लोग आपके वायदों को पढ़कर पक्ष में चर्चा कर रहे है।''
कार्यकर्ता - '' मैं सम्पूर्ण क्षेत्र का दौरा करके आ गया हूं। मतदाताओं ने ठान लिया है कि वोट सिर्फ आपको दे देंगे। आपके विपक्षी राम की जमानत जप्त हो जायेगी।''
     रावण गर्व से झूम उठा। पूछा - '' मुझे बताओं कि राम ने कैसी तैयारी की है। उनके पास क्या साधन हैं - कितने समर्थक हैं ?''
चाटुकार - '' राम के पास  हनुमान अंगद जामवंत जैसे कुछ ही लोग हैं। उनके पास अस्त्र - शस्त्रों का आभाव है। धन सम्पत्ति बिल्कुल नहीं तो चुनावी युद्ध में हारना तय है।''
      रावण ने विश्वास से कहा - '' इसका अर्थ हमारी जीत निश्चित है।''
ज्योतिषाचार्य- '' हां, मैं पंचांग और विद्या के द्वारा जान चुका हूं आप विजयी हो चुके हैं।''
     समर्थक चले गये। पश्चात विभीषण आया। पूछा - '' आपका चुनाव संचालक कौन है। कैसी तैयारी है ? '' रावण ने बताया- '' पुत्र मेघनाथ और कुम्भ कर्ण है।''
     विभीषण - '' ये आपके पारिवारिक हैं, परिवार- वाद के नाम से बदनाम हो जायेंगे। विपक्ष हमला करेगा कि रावण के दल में दूसरे लोगों का कोई महत्व नहीं है। वे मात्र अपनी और अपने परिवार की भलाई चाहते हैं।''
विभीषण ने पुन: पूछा - '' आपने अन्य दल से गठबंधन किया या नहीं ?''
     रावण- '' मैं किसी से गठबंधन क्यों करूं। मैं स्वयं पूर्ण सक्षम हूं।''
    - '' यह आपकी भूल है - कोई भी दल पूर्ण सक्षम नही होता। सहारा की आवश्यकता होती है। राम ने सुग्रीव और जामवंत से गठबंधन किया है। इससे जन शक्ति का समर्थन मिलता है।''
     - '' इस लंका में मात्र तुम मेरे आलोचक हो। कुछ समय पूर्व पत्रकार, प्रचारक आये थे। उन्होंने मुझे अभी से विजयी घोषित कर दिया है। फूल माला पहिनाई है। जय- घोष किया हैं।''
    -'' वे चाटुकार हैं। उन्हें आप पालते हैं। साथ ही डरते हैं कि अनिष्ट न कर दें। जनता के पास जाकर नम्र शब्दों में अपना पक्ष रखें। यहीं राजनीति हैं।''
     रावण नाराज हो गया। डांटा - '' मुझे राजनीति सिखाते हो- मुझे अभी से हतोत्साह कर रहें हो। चलो, जाओ।
     मंदोदरी आई। बोली- '' मैं एक गुप्त याचना लेकर आई हूं। आपके विरूद्ध प्रचार किया जा रहा है कि रावण स्त्रियों का सम्मान नहीं करता। आप सीता को लौटा दीजिये। इससे लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा।''
     रावण- '' तुम गृहणी हो। जाओ भोजन पकाओ।''
    मंदोदरी - ''आपके मतदाताओं में गृहणी हैं। किसान मजदूर युवा, दिव्यांग सभी हैं। उनके प्रति सद्भावना होगी तभी जीतेंगे।''
      रावण ने उचित सलाह को नहीं माना। अंत तक चाटु कारों के मध्य घिरा रहा। उनकी प्रशंसा से प्रफुल्लित होता रहा। चुनाव हुआ। परिणाम आया। रावण का हृदय धक धक कर रहा था। वह परिणाम सुनने व्यग्र था।
      कुछ पश्चात कोलाहल बढ़ने लगा। बाजे- गाजे बजने लगे। '' जिंदाबाद - मुर्दाबाद '' के नारे लगने लगे। आवाज आई- '' राम दल जिंदाबाद। राम की जय हो।''
      रावण तो मानो आकाश से गिरा। उसने अपने समर्थकों को बुलाया। पूछा - '' तुम मुझे विजयीभव कहते थे पर मैं क्यों हारा - कारण बताओ ?''
    कार्यकर्ता - '' आपको मतदाताओं ने धोखा दिया। उन्होंने विश्वास दिलाया मगर मुकर गये।''
     रावण ने कवि को बुलाया। पूछा - '' तुम लंका को सोने की नगरी कहते थे। मुझे लंकेश। अब क्या हूं ?''
    कवि- '' हम आपकी प्रतिष्ठा में कविता लिख कर प्रसन्न करते थे। तब आप हमें इनाम देेते थे- राष्ट्रीय सम्मान पद्म- विभूषण - पद्म- श्री देते थे। अब आपके हाथ से सत्ता फिसल गई तो गुणगान थोड़े ही करेंगे। अब विजेता राम की प्रशंसा में ग्रंथ लिखेंगे।''
     रावण ने पत्रकार से कहा - '' तुम अपने दैनिक में मुझे मुख पृष्ठ पर स्थान देकर मेरी बड़ाई करते थे। आज के दैनिक में आलोचना क्यों ?''
    पत्रकार-'' आप विज्ञापन में पैसे देते थे तो आपको सर्वश्रेष्ठ प्रजा पालक के रूप में विभूषित करते थे। अब राम विजेता हैं। उनसे विज्ञापन लेंगे। उनका गुण गान करेेंगे।''
     रावण के सभी पक्षधर साथ छोड़ कर चले गये। रावण अकेला रह गया। उसे वास्तविक जगत का पता चला कि जब तक यश पद धन है - मान है सम्मान है नायक है। उनके चले जाने के बाद उसी व्यक्ति की आलोचना है। निंदा है। वह खल नायक है।

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