छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

सोमवार, 2 जनवरी 2017

निन्‍दा बनाम स्‍तुति

     नूतन प्रसाद
    एक दिन मुझे पता चला कि ईश्वर सबको कर्तव्य पालन के लिये कार्य सौंप रहा है। उसने एक व्यक्ति को धर्म की शिक्षा देने को कहा। दूसरे को समाज सेवा करने की आज्ञा दी। मैं भी प्रभु के पास गया। कहा - '' भगवन,मुझे श्रेष्ठ कार्य पूर्ण करने की सलाह दो।''
     प्रभु ने कहा - '' जाओ तुम बुराई करो।''
   मैं आश्चर्य में डूब गया। कहा - '' यह क्या भगवन, तुमने दूसरों को उत्तम कार्य सौंपा। पर मुझे निंदा करने की आज्ञा दी।''
    भगवान ने कहा - '' तुम देर से आये। मेरे पास मात्र बुराई का कार्यक्रम बचा था।''
   मैंने कहा - '' मैं धीरे - धीरे आया हूं। वृद्ध हूं। शीघ्रता से चलने में असर्मथ हूं।''
    - '' यह तुम्हारी समस्या है। जाओ। बुराई करो। निंदा करो। आलोचना करो। और हां, वर्ष भर बाद यह बताना कि किसकी निंदा की और किस कारण की ?''
    मैं क्या करता। ईश्वर के आदेश को टाल नहीं सका। मैं वर्ष भर बाद ईश्वर के पास गया। उसने कहा - हां, तो  तुम आ गये। बताओ भला - किसकी बुराई की और क्यों की ? ''
मैंने तपाक से बताया - '' तुम्हारी।''
      ईश्वर हैरान रह गया। पूछा - '' मेरी निंदा क्यों की। तुम्हें दूसरा कोई नहीं मिला ?''
   मैंने कहा - '' मैंने दिन रात - सोते जागते। उठते - बैठते तुम्हारी निंदा की। सिर्फ तुम्हारी आलोचना की। क्योंकि ... मैं एक पूंजीपति की आलोचना करने जा रहा था कि तुम मजदूरों का शोषण करते हो। काला धन जमा रखते हो। मैं उसके पास पहुंचता कि पता चला वह निर्धन हो गया। दीवाली रात में होती है। लक्ष्मी रात में आयी। और उल्लू ने लक्ष्मी को पीठ पर बिठाया और रात को ही ले गया।
     पश्चात मैं एक  नेता की बुराई करने वाला था कि तुम चुनावी वादे पूरे नहीं करते। जनता को धोखा देते हो। मैं उसके पास पहुंचता कि पता चला वह तो चुनाव में हार गया।
   फिर मैं एक अधिकारी की बुराई करने वाला था कि तुम भ्रष्टाचारी हो। जनता का काम नहीं करते। मैं उसके पास पहुंचता कि पता चला वह रिटायर हो गया है।
   तब मैं क्या करता - मैंने तुम्हारी निंदा करना प्रारंभ कर दिया। क्योंकि जब आकाश नहीं था। पृथ्वी नहीं थी। सूर्य नहीं था। चंदमा नहीं था। तारे नहीं थे। तब तुम थे। सिर्फ तुम थे।
    और आज भी आकाश है। पृथ्वी है। सूर्य है। चंद्रमा है। तारें है। नदी हैं। पहाड़ हैं। तब भी तुम हो।
  और जब - आकाश नहीें रहेगा। पृथ्वी नहीं रहेगी। न सूरज रहेगा ना चांद रहेगा। तारे नहीं रहेेंगे। तब भी तुम रहोगे। सिर्फ तुम रहोगे। तब मैं दूसरे की बुराई क्यों करूं । तुम शाश्वत हो। इसीलिये तुम्हारी ही निंदा करूंगा। आलोचना करूंगा।''

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