छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

सोमवार, 2 जनवरी 2017

शुभकामना

  नूतन प्रसाद
     वेद व्यास ने महाभागवत पुराण की रचना की। समुद्र मंथन से अमृत, हलाहल, कल्प- वृक्ष, लक्ष्मी, ऐरावत, उच्चैश्रवा, अप्सरा, मदिरा अर्थात चौदह रत्न निकले।
    इसका समाचार किसानों को मिला। वे व्यास के पास आये। बोले - '' मंथन से बहुमूल्य रत्न निकले हैं। हमें भी दीजिये।''
    व्यास ने कहा - '' तुमने देर कर दी। अमृत को देवता पी गये। लक्ष्मी को विष्णु ले गये। ऐरावत को इन्द्र और उच्चैश्रवा को बली। अब मात्र विष बचा है। उसे ले जाओ। और हां, सभी प्राणियों की जीवन रक्षा के लिये अनाज की व्यवस्था करना।''
   किसान घबरा गये। कहा - '' यह क्या गुरूदेव, हम तो कल्प- वृक्ष मांगने आये थे। उसके नीचे बैठते। स्वादिष्ट भोजन मांगते। भरपेट खाकर आनंद मनाते। हमें कीचड़ में काम नहीं करना पड़ता। पर आप विष दे रहे हैं। ऊपर से कहते हैं कि प्र्राण की रक्षा के लिये अनाज की व्यवस्था करना।''
    व्यास ने कहा - '' मुझे ग्रंथों का सम्पादन करना है। वक्त नहीं है। तुम जाओ। अपने कार्य में लग जाओ।''
   व्यास ने विष दे दिया। किसानों ने अनिच्छा से ले लिया। बरसात हुई। खेतों में धान बोया। फसलें बढ़ने लगीं। इसी बीच शत्रु कीटों का प्रकोप हो गया। उन्हें व्यास द्वारा प्रदत विष की याद आई। उन्होंनें विष का छिड़काव किया। कीड़े  मर गये। फसलें लहलहाने लगी। अंतत: अनाज का उत्पादन अनुमान से अधिक हुआ। किसानों के चेहरे खिल उठे। वे व्यास के पास गये। कहा - '' गुरूदेव, हमें क्षमा करें। हमें आपसे दुर्भावना थी। अब खत्म हो गई है। आपने विष दिया। उसका समयानुसार और आवश्यकतानुसार उपयोग किया। पर्याप्त अनाज मिला। अब हमें और दूसरों को भरपेट भोजन मिलेगा।''
    व्यास ने शुभकामनाएं दी - '' तुम्हारे विचार उत्तम हैं। जाओ , आज से अन्न दाता कहलाओगे।''

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