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सोमवार, 2 जनवरी 2017

विश्‍वासघात

नूतन प्रसाद 
      हनुमान को सीता का पता लगाना था। वे लंका में प्रवेश करना चाहते थे कि लंकिनी से सामना हो गया। लंकिनी अपने राष्ट्र की सीमा सुरक्षा में तैनात थी। हनुमान ने छुपकर अंदर प्रवेश करने की कोशिश की '' मसक समान रूप कपि धरी।'' मगर लंकिनी ने उनकी चालाकी ना काम कर दी। अंतत: हनुमान को उस वीर नारी से युद्ध करना पड़ा। हनुमान ने बड़ी कठिनाई से लंकिनी को परास्त किया। '' मुठिका एक महा कपि हनी।'' लंकिनी अपने राष्ट्र की सुरक्षा के लिये शहीद हो गई। लंकिनी की मृत्यु के पश्चात ही हनुमान लंका में प्रवेश कर सके।
     लंकिनी का बलिदान देने का समाचार लंका में पहुंचा कि लोग शोक में डूब गये। उन्होंने श्रद्धांजलि सभा आयोजित की। लंकिनी के शव पर फूल अर्पित किया। रावण ने दुख भरे शब्दों से लंकिनी को नमन किया - '' हमारे देश को कवि लेखकों और बुद्धिजीवियों ने सोने की लंका कहा है। वास्तव में यह सम्पन्नता का प्रतीक है। यह राष्ट्र अजेय है। स्थिर है तो लंकिनी जैसे वीरांगनाओं के कारण। उसने अपने प्राण की आहुति दी। ऐसे ही देश भक्त रहेंगे तो हमारी प्यारी लंका को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता।''
     लंकिनी को देश भक्त और शहीद का दर्जा देकर उसका अंतिम संस्कार किया गया।
     उधर हनुमान चिंता में डूबे थे। लंका में भ्रमण करते जाना कि यहां की प्रजा सुखी सम्पन्न है। शिक्षित हैं। स्त्री पुरूष में सम भाव है। सैन्य व्यवस्था सुदृढ़ है। हनुमान ने एक व्यक्ति से पूछा - '' कहां से आ रहे हो ?'' उसने कहा - '' मैं लंकिनी के अंतिम संस्कार में भाग लेकर आ रहा हूं। उस वीरांगना का सम्पूर्ण राष्ट्र ने गौरव गान किया। सिर्फ एक व्यक्ति शोक सभा में उपस्थित नहीं हुआ।''
    हनुमान ने पूछा - '' वह कौन है ?''
    - '' विभीषण है। वह सामान्य जन नहीं अपितु उसकी राजनीतिक पहुंच हँ। आर्थिक रूप से मजबूत व सम्मानीय है। दिखने में सौम्य और सरल है। लोग उसे महात्मा शब्द से आदर देते हैं।''
      हनुमान प्रभावित हुए। वे विभीषण के पास गये। विभीषण ने आत्मीयता से कहा - '' आपका इस देश में स्वागत है। '' वसुधैव कुटुम्बकम - अतिथि देवो भव '' का सिद्धांत पालन किया जाता है। मैं आपका सत्कार किस प्रकार करूं , बताइये ?''
     हनुमान ने कहा - '' रावण ने सीता हरण करके यहां लाया है। मैं उन्हें वापस ले जाना चाहता हूं। मगर यहां का शैन्य बल, देश भक्ति और एकता को देखता हूं तो असम्भव लगता है।''
     विभीषण ने कहा - '' आप चिंता न करें। मैं आपके साथ हूं। सीता वापस करने में आपकी मदद करूंगा। यदि युद्ध हुआ तो आपके पक्ष में अपना सर्वशक्ति लगा दूंगा।''
    हनुमान आश्चर्य में डूब गये - '' क्या कहते हैं, लंका के लोग आपको साधु पुरूष कहते हैं। आप इस देश के सम्मानित नागरिक हैं पर देश के खिलाफ बगावत कर रहें हैं।''
    यह बगावत या खिलाफत नहीं वरन अधिकारों की मांग है। वर्तमान में रावण शासक है भावी में मैं बनना चाहता हूं। आप राम तक संदेश पहुंचा दें कि लंका में विभीषण उनका पक्षधर है। और हां,युद्ध में अन्य योद्धाओं से गठबंधन कर लेना।''
     हनुमान ने घोषणा कर दी - '' आप जैसी प्रतिभाशाली का सहयोग हमें मिला है तो हमारी जीत निश्चित है।''
      इतिहास साक्षी है कि विभीषण ने राम को विजयी बनाया। रावण युद्ध भूमि में मारा गया। इसका पुरस्कार विभीषण को मिला कि वह लंका का शासक बना। उसने रावण की पत्नी मंदोदरी को अपनी पत्नी बनाया। मगर उसके शासन काल को सोने की लंका नहीं कहा गया। क्योंकि उसने ही अपने राष्ट्र का तबाह कराने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।

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